दुल्हन को नहीं जचा दूल्हा
उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के कछवां थाना क्षेत्र के करसडा गांव में दूल्हे की सूरत देखकर दुल्हन बिदग गई। मां-बाप, गांव-टोला की मानमनौव्वल के बाद भी लड़की ने शादी करने से साफ मना कर दिया। लड़के वालों ने अपनी इज्जत का हवाला देकर लड़की को अपना फैसला वापिस लेने के लिए कहा, लड़की फिर भी नहीं मानीं। थक-हार का पंचायत बैठी और लेन-देन की रकम वापिस दे-दिवाकर बारात वापस लौटा दी गई। मतलब दुल्हा बैरंग ही वापिस चला गया। घटना बड़ी नहीं है, मगर जिस जगह यह वाकया पेश आया उस छोटे से गांव को कोई जानता भी नहीं। लड़की का सरेआम लड़के की शक्ल-ओ-सूरत पर एतराज बरतनकर उसे बाहर का रास्ता दिखाना एक साहस का काम तो है। क्योंकि शादी के नब्बे फीसदी मामलों में पसंद नापसंद का अधिकार आज भी वर पक्ष को है। लड़के के बाप को दहेज पसंद आना चाहिए, मां को लड़की के गुण और फिर लड़के को लड़की पसंद आनी चाहिए। मतलब दहेज, गुण, खुबसूरती इन तीनों को मिला जुला कर जो कुछ भी बने वही है, दुल्हन। मतलब दुल्हन वही जो सास, ससुर और पिया मन भाए। वर बनने के करीब पहुंचे दूल्हे पर वाकई बहुत बुरी गुजरी होगी। लड़के के दुख से मैं भी दुखी हूं, लेकिन यह बदलाव है। गांव की गोरी जब काले दूल्हे को अंगूठा दिखा सकती है, तो शहर की छोरियां बाप रे बाप।
घटना को थोड़ा गंभीरता से लें तो इसके कई मायनें हैं। पहले भी बारातें लौटती थीं लेकिन वापिस लौटने के सौ में से निन्यानवे मामलों में लड़के वाले दहेज की मांग पूरी न होने पर लड़की वाले को उठ जाने की धमकी देते थे। वर्ष 2001 में राजकुमार संतोषी के निर्देशन में बनी फिल्म लज्जा में दुल्हन का पिता दुल्हन के पिता को बार-बार उठ जाने की धमकी देता है, दुल्हन यह बात सुन लेती है और प्रेमी से दुल्हे बने लड़के को यह बताती है, दुल्हा यह कहते हुए पल्ला झाड़ लेता है कि मामला बड़ों का है। आखिरकार लड़की व्रिोह कर देती है। इससे पहले और इससे बाद में न जाने कितनी फिल्मों में इस दृश्य को दोहराया गया। फिल्मों से बाहर भी ऐसी घटनाएं बार -बार होती रहीं। हालिया कुछेक घटनाओं में दुल्हन ने दुल्हे को बैरंग वापिस भी किया। लेकिन मौजूदा घटना शहर से दूर एक ऐसे गांव की है, जिसके बारे में कम ही लोग जानते होंगे। दुल्हे को बैरंग लौटते वक्त गुस्सा भी आया होगा और दुख भी लगा होगा। यह जायज भी है। खैर पूरी घटना का जिक्र मैंने नारी सशक्तिकरण की मिसाल देने के लिए नहीं किया है। जब दूर-दराज में रहने वाली कोई लड़की इतना बड़ा कदम उठा सकती है, तो दिल्ली के सटे हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खाप पंचायतों के खिलाफ स्थानीय युवा और युवतियां क्यों खामोश हैं। अपने ही दोस्त, भाई-बहन के लिए जारी तुगलकी फरमानों के खिलाफ बोलने के लिए कोई क्यों नहीं आगे आता। हालांकि खाप पंचायतों का तर्क गलत है या सही है, इस पर अलग से चर्चा हो रही है और होनी भी चाहिए। करसडा गांव की सीधी-साधी लड़की शादी जसे अहम फैसले में अपनी राय बड़ों को मनवा सकती है, तो...यहां क्यों नहीं।
It begins with self
4 days ago