महाराष्ट्र में अंधविश्वास
के खिलाफ
लड़ रहे
नरेंद्र दाभोलकर
की हत्या
कर दी
गई। लंबे
समय से
वो जादू-टोना, चमत्कारों
की पोल
वैज्ञानिक जांच करने के बाद
खोल रहे
थे। कई
धार्मिक और
कट्टरवादी संगठनों को उनका ये
काम बर्दाश्त
नहीं हो
रहा था।
उन्होंने तो
अंधविश्वास फैलाने वालों के खिलाफ
कानून बनाने
के लिए
बहुत पहले
ही एक
कानूनी दस्तावेज
भी तैयार
कर लिया
था। लेकिन
विरोध के
चलते राज्य
विधानसभा में
उसे पास
नहीं किया
जा सका।
उनका ये
काम वाकई
में बहुत
कठिन था।
जहां देश
की राजनीति
मंदिर-मस्जिद
जैसे मुद्दों
से तय
होती हो,
जहां कभी
गणेश तो
कभी शंकर
की मूर्ति
दूध पीने
लगती है।
औरतों को
डायन कहकर
उनके साथ
मारपीट और
कई बार
तो जान
से ही
मार दिया
जाता है।
बिल्ली रास्ता
काट जाए
या छींक
आ जाए
तो अच्छे-अच्छे पढ़े
लिखे लोग
अपना रास्ता
बदल देते
हैं। गांव,
मोहल्लों में
बाबा बनकर
लोग भोले भाले लोगों
को अक्सर
आर्शीवाद देकर
उनसे पैसा,
अनाज, बकरियां,
मुर्गियां, गाय ठगते हैं। वहीं
शहरों में भी लोग
सैकड़ों, हजारों
यहां तक
की लाखों
खर्च कर
देते हैं,
राहू और
शनि जैसे
ग्रहों की
शांति के
नाम पर।
लोगों के
अंधविश्वास पर ही बड़े-बड़े
आश्रम फल
फूल रहे
हैं। अब
अगर दाभोलकर
जैसा कोई
समाज को
इन अंधविश्वासों
से आगे
वैज्ञानिक सोच तक ले जाएगा,
तो इससे
नुकसान ढोंगी
बाबाओं के
साथ राजनेताओं
को भी
होगा। समाज
में वैज्ञानिक
सोच फैलने
का मतलब
है, मंदिर-मस्जिद जैसे
मुद्दों का
छूटना, सांप्रदायिक
मुद्दों पर
भी लोग
सोचने लगेंगे।
फिर धर्म
और संप्रदाय
आधारित राजनीति
का क्या
होगा? बजरंग
दल और
विश्वहिंदू परिषद की धार्मिक यात्राओं
का क्या
होगा? आजकल
तो मीडिया
में भी
सुबह सुबह
ये बताया
जाता है
कि आपका
दिन कैसा
जाएगा? शादी
नहीं हो
रही है
तो कौन
ग्रह बाधा
बन रहे
हैं, नौकरी
नहीं है
तो क्या
करें? निर्मल
बाबा काली
पर्स और
समोसे के
साथ चटनी
खाने से
किस्मत बदलने
की दावा
करते है।
ये सब
मीडिया में
दिखाया जाता
है। आपका
दिन कैसा
जाएगा? शादी
नहीं हो
रही या
नौकरी नहीं
है तो
क्या करें?
चमत्कारी माला
और यंत्र
टीवी पर
खुलेआम बिक
रहे हैं।
अब जिस
अंधविश्वास पर इतने लोगों का
कारोबार निर्भर
हो उसके
खिलाफ लड़ने
वाले की
जान के
दुश्मन तो
लोग बनेंगे
ही। हत्या
होने के
बाद महाराष्ट्र
सरकार ने
हत्यारों के
खिलाफ सूचना
देने वाले
को दस
लाख रुपए
पुरस्कार देने
की घोषणा
की है।
लेकिन यही
सरकार पिछले
14 सालों से
इस कानूून
को पास
नहीं कर
पा रही
है। पर,
अब देश
के समझदार
लोगों को
चाहिए कि
वो इस
कानून के
बनने के
लिए राष्ट्रीय
स्तर का
अभियान छेड़ें।
टर्मिनल 3
1 week ago