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कटियाबाज देखी बचनपन के दिन याद आ गए। जब बत्ती
गुल होने पर मम्मी कहती थीं। दीपू जरा कटिया डाल दो। दीपू यानी बडे“ भइया।
एक बांस हमेशा छत पर रखा रहता था तार फंसाने के लिए। क्या करें बत्ती इतनी
जाती थी कि लगभग हर घर में लोग खुद ही कटिया डालना सीख लेते थे। कह सकते हैं यह बिल्कुल वैसे ही होता था जैसे एक्सट्रा कैरिकुलम एक्टिविटीज। जो आपके प्रोफाइल को थोड़ा वजनदार बनाता है। |
उत्तर प्रदेश में एक शहर है कानपुर। यहां की आतिशबाजी और चमड़ा बहुत प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध तो ठग्गू के लड्डू भी हैं। लेकिन यह शहर एक और कारनामे के लिए जाना जाता है। यह कारनामा है बिजली चोरी। शहर की गलियों में एक दूसरे को पटखनी देते कई बिजली के तारों की कटियाबाज देखी बचनपन के दिन याद आ गए। जब बत्ती गुल होने पर मम्मी कहती थीं। दीपू जरा कटिया डाल दो। दीपू यानी बडे“ भइया। एक बांस हमेशा छप रखा रहता था तार फंसाने के लिए। क्या करें बत्ती इतनी जाती थी कि लगभग हर घर में एक लोग खुद ही कटिया डालना सीख लेते थे। कह सकते हैं यह बिल्कुल वैसे ही होता था जैसे एक्सट्रा कैरिकुलम एक्टिविटीज। जो आपके प्रोफाइल को थोड़ा वजनदार बनाए।
उत्तर प्रदेश में एक शहर है कानपुर। यहां की आतिशबाजी और चमड़ा बहुत प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध तो ठग्गू के लड्डू भी हैं। लेकिन यह शहर एक और कारनामे के लिए जाना जाता है। यह कारनामा है बिजली चोरी। शहर की गलियों में एक दूसरे को पटखनी देते कई बिजली के तारों की भीड़ में आपको पता भी नहीं चलेगा कि कौन सा तार चोर तार है। यानी बिजली की चोरी के लिए सरकारी तारों में फंसाया गया तार। तार फंसाने की इस प्रक्रिया को कहते हैं कटियाबाजी। इस काम में माहिर व्यक्ति को कहते हैं कटियाबाज। उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए यह शब्द नया नहीं है। डायरेक्टर फहद मुस्तफा और दीप्ति कक्कड़ ने मिलकर कंटियाबाज फिल्म बनाई है। फिल्म में बिजली कटौती की समस्या और इसके कारणों को बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है। इस शहर में बिजली कटौती से जूझते लोगों के लिए मसीहा बनकर आता है, लोहा सिंह। लोहा सिंह एक कटियाबाज है। यानी वह बिजली चोरी करने में माहिर है। जो लोग कटियाबाजों से मिले होंगे उन्हें पता होगा कि इनका रूप रंग कुछ ऐसा होता है, मुंह में गुटखा दबाए, हाथों में प्लास लिए, खंभा चढ़ने में माहिर। इस बीच एक आई.ए.एस. अधिकारी की नियुक्ति होती शहर में। वह बिजली चोरी रोकने की कोशिश करती है। हालांकि वह नाकाम रहती है।
एक तीसरा किरदार है समाजवादी के विधायक इरफान सोलंकी का। जो कुछ लोगों के साथ बिजली विभाग में बिजली समस्या से पीड़ित जनता का अगुवा बनकर जाता है। वह उस महिला अधिकारी के साथ बदतमीजी भी करता है। लेकिन अदालत में बरी हो जाता है। इतना ही नहीं चुनाव भी जीतता है। यानी बिजली समस्या ज्यों की त्यों। यकीन न आए तो चले जाइये उत्तर प्रदेश बत्ती अभी भी गुल रहती है। कटियाबाज जमकर चांदी काट रहे हैं। और आज भी यह कटियाबाज शहर के सम्मानीय व्यक्ति माने जाते हैं।
भीड़ में आपको पता भी नहीं चलेगा कि कौन सा तार चोर तार है। यानी बिजली की चोरी के लिए सरकारी तारों में फंसाया गया तार। तार फंसाने की इस प्रक्रिया को कहते हैं कटियाबाजी। इस काम में माहिर व्यक्ति को कहते हैं कटियाबाज। उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए यह शब्द नया नहीं है। डायरेक्टर फहद मुस्तफा और दीप्ति कक्कड़ ने मिलकर कंटियाबाज फिल्म बनाई है। फिल्म में बिजली कटौती की समस्या और इसके कारणों को बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है। इस शहर में बिजली कटौती से जूझते लोगों के लिए मसीहा बनकर आता है, लोहा सिंह। लोहा सिंह एक कटियाबाज है। यानी वह बिजली चोरी करने में माहिर है। जो लोग कटियाबाजों से मिले होंगे उन्हें पता होगा कि इनका रूप रंग कुछ ऐसा होता है, मुंह में गुटखा दबाए, हाथों में प्लास लिए, खंभा चढ़ने में माहिर। इस बीच एक आई.ए.एस. अधिकारी की नियुक्ति होती शहर में। वह बिजली चोरी रोकने की कोशिश करती है। हालांकि वह नाकाम रहती है।
एक तीसरा किरदार है समाजवादी के विधायक इरफान सोलंकी का। जो कुछ लोगों के साथ बिजली विभाग में बिजली समस्या से पीड़ित जनता का अगुवा बनकर जाता है। वह उस महिला अधिकारी के साथ बदतमीजी भी करता है। लेकिन अदालत में बरी हो जाता है। इतना ही नहीं चुनाव भी जीतता है। यानी बिजली समस्या ज्यों की त्यों। यकीन न आए तो चले जाइये उत्तर प्रदेश बत्ती अभी भी गुल रहती है। कटियाबाज जमकर चांदी काट रहे हैं। और आज भी यह कटियाबाज शहर के सम्मानीय व्यक्ति माने जाते हैं।