इश्क इबादत. इश्क खुदा, इश्क के रोग बनने तक भी मामला हाथ में था। लेकिन जब से इश्क कमीना हुआ, तब से सारे आशिक निकम्मे हो गए हैं। ऐसा लोग कहते हैं मैं नहीं। मुङो तो लागता है कि आधुनिक आशिक समय प्रबंधन की बर्बादो को लेकर बेहद सजग हैं। अब देखिए न कल तक जहां इजहारे मोहब्बत में सालों लग जाते थे। और कभी-कभी तो खिलौना फिल्म के नायक की तरह नायिका की शादी में अपने टूटे हुए दिल का तोहफा लेकर पहुंच जाया करते थे। इजहार करने के बाद भी सालों पेड़ के चक्कर लगाते या फिर छिप-छिपकर छत में मिलते थे। लेकिन आज का नायक नायिका से बस एक रात साथ गुजारने की गुजारिश करते हुए सुबह तक प्यार करने की बात करता है। सुना है आजकल तो इश्कखोर फोन पर ही प्रेम पियाला पूरा का पूरा गड़प कर जाते हैं। खैर इस बार में मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगी किसी की निजता भंग करना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
लेकिन आप ही बताइये क्या इश्क जसे विषय पर सालों बर्बाद करना ठीक था। आज जहां एक मामलों को सुलझाने के लिए अदालतों में मुकदमें की फाइलें सालों-साल बाट जोह रही हैं। सरकारी फाइलों धूल और चूहों का शिकार हो रही हैं वहीं आशिक एक साथ कई मामलों को निपटाता है। अब सरकारी दफ्तरों और अदालतों में लंबित पड़ी फाइलों और मामलों को निपटाने के लिए अधिकृत बाबुओं और वकीलों को इनसे सीख लेनी चाहिए।
Sunday, September 13, 2009
Tuesday, September 8, 2009
Sunday, September 6, 2009
मोहे काहे विदेश..
शादी-ब्याह के मौकों पर लड़की के घर की महिलाएं एक गीत गाती हैं। बाबुल भइया के लाने महल-दुमहला, मोहे काहे परदेश.. मुङो पूरा गाना याद नहीं। लेकिन इसका लब्बोलुआब है कि भाई को तो आप घर में रखेंगे। लेकिन मुङो परदेश क्यों भेज रहे हैं। यहां परदेश से मतलब विदेश नहीं बल्कि लड़की की ससुराल है। हाल ही में कई ऐसी घटनाएं सामने आयीं जिनमें मां-बाप ने वाकई में अपनी बेटियों को विदेश में ब्याह दिया। उन्होंने यह पड़ताल करने की जरूरत भी नहीं समझी की लड़के का चाल-चलन कैसा है। हमारे देश के लोग विदेश जाते हैं और वहां से विदेशी बाबू होकर यह कहते हुए लौटते हैं कि उन्हें भारतीय संस्कारों वाली भारतीय बाला से ही शादी करनी है।
लड़की के मां -बाप इसे अपनी लड़की का सौभाग्य समझकर फौरन शादी करने को तैयार हो जाते हैं। अब चूंकि लड़का विदेशी है, उसके पास सीमित समय है।इसलिए शादी भी अफरा-तफरी में होती है। लड़की के घरवाले इस आफर को ठुकराना नहीं चाहते और अपनी लाडो को भेज देते हैं विदेशी बाबू के साथ। वहां न जान न पहचान। अभी तक जो लड़का भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर भारतीय नारी को अपनी संगनि बनाने को आतुर था अब उसे ही भारतीय संस्कृति पिछड़ेपन का प्रतीक लगने लगती है। इस पूरी रामकथा के पीछे मेरी मंशा उस लड़की की कहानी लिखने की है जो समृद्ध मां बाप की बेटी है, बेहद चंचल, चुलबुली थी। कक्षा में अव्वल आने वाली। बेहद मासूम, खुबसूरत। फिलहाल वो सरिता विहार के एक एमबीए कालेज से पढ़ायी कर रही है। लेकिन इस बीच उसके साथ जो घटा वह उन मां बाप के लिए सीख है, जो बगैर किसी जांच-पड़ताल अपनी बिटिया को सात समंदर पार किसी अजनबी के साथ भेज देते हैं। अभी कुछ दिन पहले मैं अपनी दोस्त के घर मैं इस लड़की से मिली। उसने अपनी पढ़ायी की बात छेड़ दी। लेकिन एक बात जो उसने कही कि उसका आत्मविश्वास बिल्कुल चुक चुका है। मैं किसी को फेस ही नहीं कर पाती। उसके जाने के बाद मैंने उसकी आवाज, और खुबसूरती की तारीफ मैंने अपनी दोस्त से की। साथ उसके इस डर के बारे में भी पूछा। जब मेरी दोस्त ने बताया कि इसकी शादी हो चुकी है।दुबई में रहने वाले एक युवक से इसकी शादी की गयी। शुरू-शुरू में लड़की अपने देश में ही रही। जहां ससुराल वालों ने उस पर दहेज लाने का दबाव बनाया। ससुरालियों की प्रताड़ना के बारे में लड़की ने अपने मां-बाप को कई बार बताया। लेकिन हर बार मायके से वही घिसी-पिटी सलाह, बेटा एडजस्ट तो करना ही पड़ता है। खैर इस बीच लड़की के पति ने उसे अपने साथ दुबयी ले जाने का प्लान बनाया। लड़की को लगा अब उसकी मुसीबत खत्म हो गयी। लेकिन पति यहां उसे अपने साथ दंपति जीवन बिताने नहीं बल्कि उसे बेचने लाया था। इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब एक दिन पति की गैर हाजिरी में कई लोग उसके घर आ धमके। खैर लड़की ने किसी तरह उनसे पिंड छुड़ाया। अपने गहने वगैरहा बेचकर फ्लाइट लेकर दिल्ली आ गयी। तीन-चार दिन दिल्ली भटकने के बाद वह अपने घर पहुंची। उस लड़की की दाग मैं इसलिए देना चाहूंगी क्योंकि वह लड़की बाइज्जद अपने घर लौट आयी। उसने यह बात जब अपने घर वालों को बतायी तो उन्होंने ससुरालियों को तलब करने की बजाए इस मामले को दबाने की मंशा से उसे दिल्ली में एमबीए करने भेज दिया। कानूनी पचड़े में वह नहीं पड़ना चाहते। वजह हमारे भ्रष्ट एवं सुस्त कानूनी प्रक्रिया का होना हो सकती है। मेरा मकसद यहां कानून व्यवस्था पर उंगली उठाना नहीं है। लेकिन क्यों मां-बाप अपनी बिटिया को सात समंदर भेजने से पहले कोई पड़ताल नहीं करते। क्यों बेटी को विदेश ब्याहने को स्टेटस सिंबल समझते हैं।
आखिर में मुङो अपने घर में होने वाली चर्चा की याद आ गयी मैंने अक्सर लड़की के मां-बाप को यह कहते सुना है कि बिटिया के ण से उण हो जाएं बस गंगा नहाएंगे। बिटिया कोई उधार नहीं है जिसे आप दहेज देकर चुकता करें। गाय की तरह किसी भी खूंटे से बांधने से पहले यह तो सोंचे की यह खूंटा किसी कसाई का तो नहीं।
लड़की के मां -बाप इसे अपनी लड़की का सौभाग्य समझकर फौरन शादी करने को तैयार हो जाते हैं। अब चूंकि लड़का विदेशी है, उसके पास सीमित समय है।इसलिए शादी भी अफरा-तफरी में होती है। लड़की के घरवाले इस आफर को ठुकराना नहीं चाहते और अपनी लाडो को भेज देते हैं विदेशी बाबू के साथ। वहां न जान न पहचान। अभी तक जो लड़का भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर भारतीय नारी को अपनी संगनि बनाने को आतुर था अब उसे ही भारतीय संस्कृति पिछड़ेपन का प्रतीक लगने लगती है। इस पूरी रामकथा के पीछे मेरी मंशा उस लड़की की कहानी लिखने की है जो समृद्ध मां बाप की बेटी है, बेहद चंचल, चुलबुली थी। कक्षा में अव्वल आने वाली। बेहद मासूम, खुबसूरत। फिलहाल वो सरिता विहार के एक एमबीए कालेज से पढ़ायी कर रही है। लेकिन इस बीच उसके साथ जो घटा वह उन मां बाप के लिए सीख है, जो बगैर किसी जांच-पड़ताल अपनी बिटिया को सात समंदर पार किसी अजनबी के साथ भेज देते हैं। अभी कुछ दिन पहले मैं अपनी दोस्त के घर मैं इस लड़की से मिली। उसने अपनी पढ़ायी की बात छेड़ दी। लेकिन एक बात जो उसने कही कि उसका आत्मविश्वास बिल्कुल चुक चुका है। मैं किसी को फेस ही नहीं कर पाती। उसके जाने के बाद मैंने उसकी आवाज, और खुबसूरती की तारीफ मैंने अपनी दोस्त से की। साथ उसके इस डर के बारे में भी पूछा। जब मेरी दोस्त ने बताया कि इसकी शादी हो चुकी है।दुबई में रहने वाले एक युवक से इसकी शादी की गयी। शुरू-शुरू में लड़की अपने देश में ही रही। जहां ससुराल वालों ने उस पर दहेज लाने का दबाव बनाया। ससुरालियों की प्रताड़ना के बारे में लड़की ने अपने मां-बाप को कई बार बताया। लेकिन हर बार मायके से वही घिसी-पिटी सलाह, बेटा एडजस्ट तो करना ही पड़ता है। खैर इस बीच लड़की के पति ने उसे अपने साथ दुबयी ले जाने का प्लान बनाया। लड़की को लगा अब उसकी मुसीबत खत्म हो गयी। लेकिन पति यहां उसे अपने साथ दंपति जीवन बिताने नहीं बल्कि उसे बेचने लाया था। इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब एक दिन पति की गैर हाजिरी में कई लोग उसके घर आ धमके। खैर लड़की ने किसी तरह उनसे पिंड छुड़ाया। अपने गहने वगैरहा बेचकर फ्लाइट लेकर दिल्ली आ गयी। तीन-चार दिन दिल्ली भटकने के बाद वह अपने घर पहुंची। उस लड़की की दाग मैं इसलिए देना चाहूंगी क्योंकि वह लड़की बाइज्जद अपने घर लौट आयी। उसने यह बात जब अपने घर वालों को बतायी तो उन्होंने ससुरालियों को तलब करने की बजाए इस मामले को दबाने की मंशा से उसे दिल्ली में एमबीए करने भेज दिया। कानूनी पचड़े में वह नहीं पड़ना चाहते। वजह हमारे भ्रष्ट एवं सुस्त कानूनी प्रक्रिया का होना हो सकती है। मेरा मकसद यहां कानून व्यवस्था पर उंगली उठाना नहीं है। लेकिन क्यों मां-बाप अपनी बिटिया को सात समंदर भेजने से पहले कोई पड़ताल नहीं करते। क्यों बेटी को विदेश ब्याहने को स्टेटस सिंबल समझते हैं।
आखिर में मुङो अपने घर में होने वाली चर्चा की याद आ गयी मैंने अक्सर लड़की के मां-बाप को यह कहते सुना है कि बिटिया के ण से उण हो जाएं बस गंगा नहाएंगे। बिटिया कोई उधार नहीं है जिसे आप दहेज देकर चुकता करें। गाय की तरह किसी भी खूंटे से बांधने से पहले यह तो सोंचे की यह खूंटा किसी कसाई का तो नहीं।
Thursday, September 3, 2009
स्वाइन फ्लू जांच पर सवालिया निशान
स्वाइन फ्लू जांच पर सवालिया निशान
संध्या द्विवेदी, नई दिल्ली
रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब में स्वाइन फ्लू के परीक्षण के लिए इकट्ठे किए गए नमूनों का विश्लेषण रेलिगियर नहीं बल्कि उद्योग विहार स्थित लैब इंडिया रिसर्च लैब में भी हो रहा है। हालांकि आधिकारिक तौर पर लैब इंडिया परीक्षण करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है। खुद लैब इंडिया के प्रबंध निदेशक वी एस उपाध्याय ने कहा कि रैनबक्सी की कंपनी रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब के चार सौ से ज्यादा संदिग्ध स्वाइन फ्लू के नमूनों का विश्लेषण उनकी लैब में हुआ है। यह पूछने पर की स्वाइन फ्लू परीक्षण के लिए एसआरएल और इंडिया लैब के बीच की गयी इस साझीदारी की जानकारी सरकार को थी कि नहीं। उनका जवाब था कि सरकार ने एसआरएल को आधिकारिक तौर पर परीक्षण के लिए स्वीकृति दी है। ऐसे में परीक्षण की पूरी प्रक्रिया की जिम्मेदारी रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब की है। कोई गड़बड़ी होने पर जवाबदेही रेलिगियर की है।
इस बीच, एक सबसे अहम सवाल यह भी उठता है कि रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब को स्वाइन फ्लू परीक्षण के लिए 27 तारीख को सरकार की तरफ से मंजूरी मिली थी लेकिन एनआईसीडी 10 तारीख से ही वहां पर जांच के लिए स्वाइन फ्लू नमूनों को भेज रही थी। दस तारीख से लेकर 27 तारीख तक 400 से भी ज्यादा नमूनों की जांच की गयी। लेकिन उनकी जांच लैब इंडिया में की गयी, जो कि स्वाइन फ्लू परीक्षण के लिए अधिकृत नहीं है। उस वक्त रैनबैक्सी की कंपनी एसआरएल के पास स्वाइन फ्लू परीक्षण मशीन रीयल टाइम पीसीआर नहीं थी, ऐसे में रेलिगियर नमूने इकट्ठे करती थी उसका इक्सट्रेक्ट भी निकालती थी लेकिन सबसे अंतिम और अहम चरण यानी नमूने का विश्लेषण लैब इंडिया में होता था।
उधर, रैलिगेयर परीक्षण लैब के डा. अशोक ने इस बात को माना की शुरुआती दौर में एनआईसीडी से आए सारे नमूने लैब इंडिया में ही भेजे गए थे। हालांकि, सवाल यह भी उठता है कि बगैर टेस्टिंग मशीन रीयल टाइम पीसीआर के एनआईसीडी ने स्वाइन फ्लू के नमूनों की जांच के लिए रेलिगियर को नमूने क्यों भेजे। सरकार ने दिल्ली की चार लैबों, डा. नवीन डैंग, औरोप्रोब, डा, लाल लैब रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब को स्वाइन फ्लू परीक्षण के लिए अनुमति दी है। गौरतलब है कि रेलिगियर 4500 में स्वाइन फ्लू परीक्षण कर रही है, जबकि अन्य तीनों लैब 9,000 में परीक्षण कर रही हैं। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार खुद जांच नतीजा नेगिटिव होने पर 5,000 और पाजिटिव होने पर 10,000 खर्च आने की बात कह रही है। ऐसे में रेलिगियर ने 4,500 में जांच करने की बात कहकर प्राइस वार छेड़ दिया है। लेकिन ऐसे में जांच की गुणवत्ता पर सवालिया निशान लग गए हैं।
संध्या द्विवेदी, नई दिल्ली
रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब में स्वाइन फ्लू के परीक्षण के लिए इकट्ठे किए गए नमूनों का विश्लेषण रेलिगियर नहीं बल्कि उद्योग विहार स्थित लैब इंडिया रिसर्च लैब में भी हो रहा है। हालांकि आधिकारिक तौर पर लैब इंडिया परीक्षण करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है। खुद लैब इंडिया के प्रबंध निदेशक वी एस उपाध्याय ने कहा कि रैनबक्सी की कंपनी रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब के चार सौ से ज्यादा संदिग्ध स्वाइन फ्लू के नमूनों का विश्लेषण उनकी लैब में हुआ है। यह पूछने पर की स्वाइन फ्लू परीक्षण के लिए एसआरएल और इंडिया लैब के बीच की गयी इस साझीदारी की जानकारी सरकार को थी कि नहीं। उनका जवाब था कि सरकार ने एसआरएल को आधिकारिक तौर पर परीक्षण के लिए स्वीकृति दी है। ऐसे में परीक्षण की पूरी प्रक्रिया की जिम्मेदारी रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब की है। कोई गड़बड़ी होने पर जवाबदेही रेलिगियर की है।
इस बीच, एक सबसे अहम सवाल यह भी उठता है कि रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब को स्वाइन फ्लू परीक्षण के लिए 27 तारीख को सरकार की तरफ से मंजूरी मिली थी लेकिन एनआईसीडी 10 तारीख से ही वहां पर जांच के लिए स्वाइन फ्लू नमूनों को भेज रही थी। दस तारीख से लेकर 27 तारीख तक 400 से भी ज्यादा नमूनों की जांच की गयी। लेकिन उनकी जांच लैब इंडिया में की गयी, जो कि स्वाइन फ्लू परीक्षण के लिए अधिकृत नहीं है। उस वक्त रैनबैक्सी की कंपनी एसआरएल के पास स्वाइन फ्लू परीक्षण मशीन रीयल टाइम पीसीआर नहीं थी, ऐसे में रेलिगियर नमूने इकट्ठे करती थी उसका इक्सट्रेक्ट भी निकालती थी लेकिन सबसे अंतिम और अहम चरण यानी नमूने का विश्लेषण लैब इंडिया में होता था।
उधर, रैलिगेयर परीक्षण लैब के डा. अशोक ने इस बात को माना की शुरुआती दौर में एनआईसीडी से आए सारे नमूने लैब इंडिया में ही भेजे गए थे। हालांकि, सवाल यह भी उठता है कि बगैर टेस्टिंग मशीन रीयल टाइम पीसीआर के एनआईसीडी ने स्वाइन फ्लू के नमूनों की जांच के लिए रेलिगियर को नमूने क्यों भेजे। सरकार ने दिल्ली की चार लैबों, डा. नवीन डैंग, औरोप्रोब, डा, लाल लैब रेलिगियर एसआरएल डायग्नोस्टिक लैब को स्वाइन फ्लू परीक्षण के लिए अनुमति दी है। गौरतलब है कि रेलिगियर 4500 में स्वाइन फ्लू परीक्षण कर रही है, जबकि अन्य तीनों लैब 9,000 में परीक्षण कर रही हैं। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार खुद जांच नतीजा नेगिटिव होने पर 5,000 और पाजिटिव होने पर 10,000 खर्च आने की बात कह रही है। ऐसे में रेलिगियर ने 4,500 में जांच करने की बात कहकर प्राइस वार छेड़ दिया है। लेकिन ऐसे में जांच की गुणवत्ता पर सवालिया निशान लग गए हैं।
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