इश्क इबादत. इश्क खुदा, इश्क के रोग बनने तक भी मामला हाथ में था। लेकिन जब से इश्क कमीना हुआ, तब से सारे आशिक निकम्मे हो गए हैं। ऐसा लोग कहते हैं मैं नहीं। मुङो तो लागता है कि आधुनिक आशिक समय प्रबंधन की बर्बादो को लेकर बेहद सजग हैं। अब देखिए न कल तक जहां इजहारे मोहब्बत में सालों लग जाते थे। और कभी-कभी तो खिलौना फिल्म के नायक की तरह नायिका की शादी में अपने टूटे हुए दिल का तोहफा लेकर पहुंच जाया करते थे। इजहार करने के बाद भी सालों पेड़ के चक्कर लगाते या फिर छिप-छिपकर छत में मिलते थे। लेकिन आज का नायक नायिका से बस एक रात साथ गुजारने की गुजारिश करते हुए सुबह तक प्यार करने की बात करता है। सुना है आजकल तो इश्कखोर फोन पर ही प्रेम पियाला पूरा का पूरा गड़प कर जाते हैं। खैर इस बार में मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगी किसी की निजता भंग करना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
लेकिन आप ही बताइये क्या इश्क जसे विषय पर सालों बर्बाद करना ठीक था। आज जहां एक मामलों को सुलझाने के लिए अदालतों में मुकदमें की फाइलें सालों-साल बाट जोह रही हैं। सरकारी फाइलों धूल और चूहों का शिकार हो रही हैं वहीं आशिक एक साथ कई मामलों को निपटाता है। अब सरकारी दफ्तरों और अदालतों में लंबित पड़ी फाइलों और मामलों को निपटाने के लिए अधिकृत बाबुओं और वकीलों को इनसे सीख लेनी चाहिए।
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मगर यह सच है यह सरकारी फाईल की गति से नहीं चल सकता -जल्दी से निपट जाना ही इसकी फितरत है ! यहाँ और अगले लेख भी पढें !
ReplyDeleteआपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.
ReplyDeleteभाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.
वाह-वाह क्या लिखा है आपने बहुत खुब। मजेदार व्यंग के लिए बधाई........
ReplyDeleteसटीक्।
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