छौना पत्रकार हूं, सो पत्रकारिता अभी सिर चढ़कर बोलती है। पिछले साल दीवाली को दफ्तर पहुंचते ही आदेश हुआ कि उत्तम नगर चले जाओ, वहां कुम्हारों की बस्ती है। दीपावली पर विशेष सामग्री इकट्ठी करनी है तुम्हें। उछलता-कूदता मैं पहुंच गया स्पॉट पर। कुछ पूरे कच्चे, कुछ आधे कच्चे घर। उन पर ढेर के ढेर मिट्टी के बने दीये, झूमर, लक्ष्मी, गणेश समेत कई अन्य सामान। देखकर जी खुश हो गया। दाम-वाम पूछे। साथ में फोटोग्राफर था। वो तो मानों इस नजारे को देखकर काबू में नहीं थे। कहीं कच्चे चूल्हों के पास बैठी महिलाएं को अपने कैमरे में कैद करते तो कहीं चाक पर घूमती उंगलियों को। नजारा भी अद्भुत था। कई महिलाएं और बच्चे गीली मिट्टी के ढेर को पैरों से रौंधने में लगे थे। माटी कहे कुम्हार से तू क्यों रौंधे मोह..इस दृश्य को देखकर यही पंक्तियां याद आ रही थीं। अब बारी थी, कुछ प्रसिद्ध कुम्महार परिवारों से मिलने की। ग्रामीण परिदृश्य को देख प्रफुल्लित होने के बाद अब बारी चौैंकने की थी। कॉलोनी में कुछ ऐसे परिवार थे, जिनके हुनर को पूर्व राष्ट्रपतियों ने सराहा था। उन्हें राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के सर्टिफिकेट भी मिले थे। लेकिन अब उनके आगे की पीढ़ी इस काम को अपनाना नहीं चाहती थी। इससे ज्यादा ताज्जुब तब हुआ जब परिवार के बुजुर्ग भी नई पीढ़ी के इन विचारों से सहमत थे। वो भी नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे इस काम में लगें। मैंने एक बुजुर्ग से पूछा अगर आप लोग ऐसा करेंगे तो धीरे-धीरे यह हुनर लुप्त हो जाएगा। इससे देश अपनी एक पारंपरिक विरासत से वंचित हो जाएगा। जी होता है तो हो। फिर आपको तो सर्टिफिकेट भी मिले हैं। सर्टिफिकेटों से पेट नहीं भरता। हुनर को सराहने से काम नहीं चलता। हमारा हुनर और मेहनत मिट्टी के भाव खरीदकर व्यवसायी चार गुना दामों में बेचते हैं। इन बच्चों को इस काम में डालकर उनके भविष्य को मिट्टी में नहीं मिलाना चाहते हैं। अब मेरे पास कोई जवाब नहीं था। उस बुजुर्ग के चेहरे से हटकर मेरी नजर उन दीपकों पर जाकर टिक गई, जो खास दीपावली के लिए बनाए गए थे। कसीदाकारी किए दीये। तरह-तरह की आकृति। मैंने कुछ अपने लिए कुछ दोस्तों के लिए दीवाली की शुभकामनाएं देने के लिए बतौर उपहार देने की नियत से दीपक खरीद लिए। घर पहुंचा घर वालों औैर पड़ोसियों ने दीपकों को खूब सराहा। इन दीयों ने उजाला भी बिखेरा। जलते दीयों को देखकर मैं उस हुनरमंद कुम्हार की बातें याद कर रही थी और जब ये कुम्हार मर जाएगा तो दीपक कौन बनाएगा। सवाल उठ रहा था मन में आखिर चिराग तले अंधेरा क्यों?
It begins with self
5 days ago
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