कल हमेशा बेहतरी का दावा करता है, आज अक्सर अपरिपक्व होने का आरोप ङोलता है। पीढ़ियों के बीच भी कुछ ऐसी ही बहस सदा से चलती आ रही है। मौजूदा जमात बुजुर्गो को हमेशा दकियानूसी और कम रफ्तार समझती है जबिक पुरानी पीढ़ी वर्तमान पीढ़ी की रफ्तार को बेलगाम मानती है। हम जो कर गुजरे तुम लोग तो कर ही नहीं सकते, पचास के दशक के सफेद दाढ़ी वाले बुजुर्ग ने अपने करीब खड़े युवाओं पर ताना मारा तो, मौजूदा पीढ़ी की नुमाइंदगी कर रहे युवाओं से बर्दाश्त नहीं हुआ। आप वो करके दिखाइये जो हम करते हैं। अब तो बड़े मियां जी को गुस्सा आ गया। तुम लोग कंप्यूटर पर काम करने को आधुनिक और विकसित होने की कसौटी समझते हो। हमारे साथ पैदल चलकर दिखाओ तो जानें, चुनौती भरे अंदाज में दादा जान ने अपने चारों ओर खड़े नवयुवकों पर नजर डालते हुए कहा। तपाक से जवाब मिला मैट्रो है कदम-कदम पर हम पैदल क्यों चलें? अजी तुम्हारे भीतर वो ताकत ही नहीं है। हमने तो ढाई-ढाई सौ ग्राम घी खाया और जमकर मेहनत की। लो जी हराम की तो हम भी नहीं खाते जी-जान से मेहनत करते हैं, 12-15 कभी-कभी 18-18 घंटे। हमारे जमाने में तहजीब थी तुम लोगों में तो..। कैसे कह सकते हैं हम बदतमीज हैं। हम अपने मां-बाप के पैर दबाते थे। उनके सामने बात करने से भी डरते थे। उनसे बहस नहीं..। तो हम भी अपने मां-बाप को प्यार करते हैं। हर त्यौहार में उनसे मिलने जाते हैं। उन्हें फोन करते हैं। उनके लिए उपहार भी ले जाते हैं। अब बताइये। लेकिन बहस करते हैं, जिद करते हैं..। क्योंकि जिद करो आगे बढ़ो। दैनिक भास्कर अखबार की पंचलाईन ठोंकते हुए एक युवक ने जवाब दिया। बड़े मियां को समझ नहीं आया। पूरा-पूरा दिन फोन पर लगे रहो..एसएमएस करते रहो। वक्त की बर्बादी। लो जी बगैर किसी से मिले फोन पर हाल-चाल ले लिया, दे दिया। इसमें बुराई क्या है। दादा मियां को और गुस्सा आया उन्होंने कहा बगैर सोचे समङो कुछ भी कर डालते हो तुम, डर नाम की कोई चीज नहीं। दूसरे युवक ने फिल्मी अंदाज में कहा अंकल..डर के आगे जीत है। अब तक एक आंटी भी फॉम में आ चुकी थीं। आज कल के बच्चे तो बीवी आई नहीं की मां को टाटा कह देते हैं। बीवी का हाथ पकड़ा और बस निकल लिए। पहले तो परिवारों के बीच में हम रहते थे। करीब खड़ी एक लड़की ने कहा..। कितना जुल्म होता था न आपका मन तो होता होगा कि आप अंकल के साथ रहें? हां पर, दुख और गुस्से से भरी आंटी ने अपनी सास को संबोधित करते हुए कहा माता राम की सेवा जो करनी थी। पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई। और हम आपकी उम्र में आकर सासा को धिक्कारना नहीं चाहते और जिंदगी की बर्बादी पर अफसोस नहीं करना चाहते। एक टिप्पणी जो बस के किसी कोने में खड़ी एक मोहतरमा की टिप्पणी ने सब का ध्यान खींचा। दरअसल पीढ़ियों के बीच हमेशा रेस की मानसिकता बनीं रहती है। बुजुर्गो को मुख्य धारा से कटने का डर और युवकों को मुख्यधारा में बनें रहने की चिंता रहती है। जबकि दोनों ही चिंता फिजूल हैं। जड़ों से कट के पेड़ पनपता नहीं और ठूंठ किसी को रिझाता नहीं। पर यह आजकल के बीच यह बहस जारी है रहेगी और मैं तो कहती हूं रहनी भी चाहिए। क्योंकि यही बहस कम से कम मुङो मेरे पापा से और पापा को दादा से जोड़े रखती है। ये नोंकझोक भी जरूरी है। बहस में लगभग एंकर की भूमिका निभा रही एक लड़की जो आज की थी, उसने स्टॉप आने पर कल यानी दादा मियां को बाय किया। उसके इस संबोधन से गदगद दादा मियां ने आर्शीवाद भरे अंदाज में हाथ उठाया। तुम्हें यहीं उतरना है, क्या बेटा?
It begins with self
4 days ago
आपका यह लेख है आज अखबार में
ReplyDeleteदेखिए www.BlogsInMedia.com