खुशकिस्मत है वो सास जिसे अच्छी बहू मिल जाए। इस मामले में मेरी किराएदारिन बड़ी भाग्यशाली हैं। एक तो बहू कमाऊ है ऊपर से स्वाभाव भी बहुत अच्छा है। आज ही सुबह मिली तो कह रही थी आंटी बस अब कुछ दिन ही तो आपके साथ हैं। डेढ़ करोड़ की कोठी खरीदी है। खरीदें भी क्यों न लड़का-बहू दोनों कमाऊ हैं। पति की अच्छी खासी जॉब है। अपने लड़के के लिए मैं बस ऐसी ही बहू चाहती हूं। दरअसल बस में बैठी तीन महिलाएं बहू चर्चा में तल्लीन थीं। तीनों संभ्रांत परिवार से थीं। उनमें से एक महिला जो कुछ अधेड़ थी, ने अपने लिए बिल्कुल वैसी ही पुत्र वधू की कामना की जैसी उनकी किराएदारिन की है। अंतिम वाक्य पूरा करते-करते उनकी सांस कुछ लंबी और आंखें ऊपर को हो गईं थीं। मानों ईश्वर से किसी गंभीर वरदान की कामना कर रही हों। अब स्पष्ट ये नहीं था कि बहू का सीधा-सरल स्वाभाव संभावित सास को भाया या उसके ऊंचे ओहदे की नौकरी। हो सकता है दोनों का मिला-जुला असर हो। पर सुकून वाली बात यह है कि चिरकाल से सास रूपी प्रजाति और बहू रूपी प्रजाति के बीच जारी शीत युद्ध में कुछ गर्माहट का एहसास हुआ। लगता है दोनों के बीच जमीं बर्फ पिघलने लगी है। ईश्वर करे कि इन तीन महिलाओं की बात दूर तलक जाए। हर सास के जहन में उतरे और इस रिस्ते में मिसरी घोले। संभावित बहू होने के नाते मेरा भी दायित्व बनता है कि मैं अपनी प्रजाति के बीच इस संदेश को फैलाऊं। और बताऊं कि सांसे अब बहुओं पर शासन नहीं बल्कि उनसे सामंजस्य बनाना चाहती हैं। उन तीनों में से एक महिला जो बामुश्किल तीन-चार साल पहले ही बहू बनीं थी। इस चर्चा में उसकी टिप्पणी भी दर्ज करने लायक है। मेरी सास और मेरे बीच में कभी कोई खटर-पटर नहीं होती। जब मम्मी गांव चली जातीं हैं तो मैं तो बिल्कुल परेशान हो जाती हूं। ये तो सारा दिन बाहर रहते हैं और मैं अकेली खटती रहती हूं। मम्मी से बड़ा सहारा है। बेटे की देखभाल भी बिल्कुल अच्छी तरह होती है। अब यहां भी वही सवाल उठता है जो ऊपर उठा था कि मम्मी के काम का सहारा है या फिर मम्मी का साथ सुहाता है। लेकिन बात जो भी हो यह टिप्पणी दुनिया के सबसे ज्यादा चर्चित रिस्ते के लिए बेहद अहम है, क्योंकि यह बयान आधिकारिक तौर पर उस महिला ने दिया जो हालिया बहू बनी है और उसके सास बनने की पृष्ठभूमि बन चुकी है। क्योंकि उसके बेटा हो चुका है। तीसरी महिला निर्विकार भाव से दोनों को सुन रही थी। मानों इस ऐतिहासिक बदलाव की प्रत्यक्षदर्शी बन कर इतिहास के पन्नों में दर्ज होना चाहती हो। और मैं सोच रही थी, पर्यावरण के लिहाज से भले ही ग्लेशियरों का पिघलना खतरनाक हो। कई सारी आपदाओं को न्यौता हो। लेकिन इस संबंध में अब गर्माहट आना बेहद जरूरी है। दोनों पक्षों के मन में बन चुके ग्लेशियर जितनी जल्दी पिघलें उतना अच्छा होगा। व्यक्ति, घर, परिवार और समाज के लिए।
bahut accha lekin is Rishte ki khinchtan kabhi khatam nhi hogi :P :P
ReplyDeleteकल 26/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
thanx sir
Deleteसही और सुन्दर लिखा है.
ReplyDeletesukriya ji
Deleteकहीं कहीं वर्फ पिघलती है तो कहीं ज्वालामुखी फटने से नयी चट्टानें भी बनती हैं ... यह सब बातें अलग अलग प्रकृति पर निर्भर करता है ...सुकून देने वाला लेख
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
thanx ma'm
Deleteगंभीर विषय मगर रोचक प्रस्तुतिकरन..
ReplyDeleteएक म्यान में दो तलवार!!!!!
:-)
देखते हैं.....
अनु
vakai mudda to gambhir hai thanx
Deleteबढ़िया लेखन... अच्छी प्रस्तुति....
ReplyDeleteji sukriya
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