Tuesday, April 17, 2012
कोलकाता की ‘हिटलर दीदी’
पश्चिम बंगाल की ममता दीदी इन दिनों पूरे देश की सुर्खियां बटोर रही हैं। केंद्र की सियासत में तो गाहे बगाहे अपना रुतबा दीखा ही देती हैं, इसके इतर राज्य में भी उनके फैसले चर्चा का विषय बने हुए हैं। अब देखिए न हालिया फरमान उनका सख्त होने के साथ ही रोचक भी है। उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी यानी तृणमूल के किसी भी कार्यकत्र्ता का संबंध किसी भी स्तर पर उनकी धुर विरोधी पार्टी सीपीएम से नहीं होना चाहिए। तृणमूल की नेता एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक ने दीदी के संदेश को कुछ इस तरह से पहुंचाया। ‘सीपीएम के साथ किसी भी तरह की रिस्तेदारी न बनाएं। यदि आप विरोधी पार्टी के किसी नेता से चाय की दुकान पर भी मिलते हैं तो उनसे बातचीत मत करिए। हमने सीपीएम के सामाजिक बहिष्कार की कसम खाई है। आपको यकीन दिलाना होगा की आप हमारी विपक्षी पार्टी के किसी नेता के परिवार से अपने परिवार के किसी व्यक्ति का वैवाहिक संबंध भूलकर भी नहीं होने देंगे।’ मेरी चिंता तो केवल इतनी है कि अगर दोनों परिवारों के बच्चों के बीच इश्क-विश्क का चक्कर चल गया तो फिर क्या होगा? खैर अब पार्टी कार्यकत्र्ता अपने बच्चों को पार्टी प्रमुख की हिदायत से वाकिफ करा ही देंगे। चिंता ये भी है कि सीपीएम पार्टी कार्यकत्र्ता और तृणमूल के लोगों को बीच अगर पहले से ही कोई संबंध हुआ तो? शायद ऐसा होने पर संबंध विच्छेद करने की हिदायत दी जाएगी। इन दिनों एक टीवी सीरियल काफी चर्चि हो रहा है, हिटलर दीदी। हो सकता है उसे दीदी से ही प्रेरणा मिली हो। यह मेरे निजी विचार हैं और अक्सर जैसा होता आया है कि निजी विचार में तथ्यों की जगह आत्मनिष्ठता हावी रहती है। उनके इस तुगलकी फरमान से साफ हो गया है कि दीदी के दामन को पकड़कर राजनीति करने के इच्छुक लोगों को दीदी के द्वारा बनाए गए दायरे तक ही सीमित रहना होगा। हाल ही में कोलकाता में एक और घटना घटी। जिसने ममता को कठोर होने पर मजबूर कर दिया। जादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने ममता दी के कुछ काटरून नेट पर डाल दिए। बस क्या था दी के कार्यकत्र्ताओं ने कर दी पिटाई। खैर, पुलिस ने दोनों को पकड़कर सलाखों के पीछे डाल दिया। अब वो बात अलग है कि कार्यकत्र्ता 500-500 का मुचलका देकर बरी हो गए। और बेचारे प्रोफेसर साहब को पूरी रात जेल में काटनी पड़ी। लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं कि दीदी तानाशाह हो गई हैं। लेकिन मेरा मानना कुछ और ही है। दरअसल दीदी लोकतंत्र का दायरा बनाने की कोशिश कर रही हैं। समाज में बराबरी लाने के लिए प्रयासरत हैं। तभी तो प्रोफेसर और उन्हें पीटने वाले कार्यकत्र्ता दोनों पकड़े गए। छोड़ने का वक्त अलग-अलगा था तो क्या? इतना तो चलता है। उनके साथ ट्रीटमेंट भी अलग हुआ होगा। इतना भी चलता है। दूसरी तरफ दीदी का एक और फैसला जो लोकतंत्र के हिमायतियों को कुछ अखर रहा है वो ये कि उन्होंने कार्ल मार्क्स को स्कूली पाठ्यक्रम से हटाने का प्रस्ताव रखा है। यहां भी दीदी का सोचना शायद यह हो की स्कूली बच्चों के मन मस्तिष्क में किसी भी विपरीत चिंतन के लिए जगह नहीं होनी चाहिए। अब मार्क्स को पढ़ेंगे तो समाज के वर्गो में द्वंद्व पैदा होगा। जो कि विकास के लिए ठीक नहीं है। अब दीदी बड़ी हैं जो सोचा होगा समझकर ही सोचा होगा। दिनेश त्रिवेदी का मामला भी सबको पता ही है। नौ साल बाद किराया बढ़ाने पर उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
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