पिछले दिनों कें्र द्वारा जारी किए गए महिला संरक्षण अभियान के शुभारंभ के अवसर पर दिल्ली की बाल एवं महिला विकास मंत्री कृष्णा तीरथ से मिलना हुआ। स्वाभाव से बेहद मिलनसार। बात निकली तो, पीएनडीटी एक्ट (भ्रूण हत्या के खिलाफ बनाया गया कानून) तक पहुंची। तकरीबन पं्रह साल पहले 1994 में यह कानून बन गया था। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि तब से अभी तक केवल एक डाक्टर ही इसकी जद में आया। मैडम ने कहा, मुद्दा बेहद गंभीर है। मैंने उनसे सवाल किया कि आखिर इसकी वजह क्या है, कि ऐसे लोग कानून के शिकंजे से क्यों बचे हैं। उनके एक जवाब से मुङो कई सवालों के जवाब मिल गए कि आखिर इतने कानून होने के बावजूद महिलाओं असुरक्षित क्यों हैं, घरेलू हिंसा से अभी तक महिलाएं क्यों नहीं पार पा रही हैं, उनका जवाब था, यह काम स्वास्थ्य मंत्रालय का है। मैंने फौरन दूसरा जवाब जड़ दिया तो मैडम बाल एवं महिला विकास मंत्रालय का क्या काम है। उनके माथे पर बल पड़ गए। उन्होंने बेहद सधे अंदाज में कहा कि मुङो समझ नहीं आता कि आखिर इतने जागरुकता अभियान चलाए जाने के बाद, महिलाओं को इतने कानूनी अधिकार मिलने के बाद भी लोग लड़कियों को क्यों मारना चाहते हैं। अब तो हद ही हो गयी। राज्य की मंत्री ही सवाल के फेर में इस कदर उलझी हैं तो आखिर जनता को जवाब कौन देगा। उन्होंने कई कानूनी संरक्षणों की सूची गिनानी शुरू कर दी। लाडली योजना, घरेलू ¨हसा विधेयक, वगैरहा-वगैरहा..। मैंने फिर उनसे सवाल किया मैडम इतना ही बता दीजिए कि आखिर आपको अपने सवाल का जवाब कब तक मिलेगा। अब उन्होंने कहा..मैंने कई गैरसरकारी संगठनों, विधायकों और सांसदों से मुलाकात की है। सभी असमंजस की स्थिति में हैं। जय हो.. मंत्री महोदया से यह संवाद मेरे अंदर उमड़-घुमड़ रहे सवालों के झंझावातों में एक सवाल और जोड़ गया कि इन बेचारे जन प्रतिनिधियों से आख्रिर हम ऐसे सवाल ही क्यों करते हैं। जो पूरे कार्यकाल सवालों के बवंडर से घिरे रहते हैं या कह सकते हैं घिरे दिखायी देते हैं। और कार्यकाल खत्म होने तक शिद्दत के साथ सवालों के जवाब खोजते रहते हैं। जय हिंद..
bahut hi sahi mudda ko aawaj dene ki jo koshish kari hai aapane ...........usake liye bahut saree badhaaee deta hu .............padhakar bahut kuchh jaan bhi gaya
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