अजमेर में नाता नाम की एक परंपरा है। इस परंपरा की शुरूआत बाल विवाह से होती है। गुड्डे-गुड़ियों की तरह ब्याह दिए गए बच्चे जब वयस्क हो जाते हैं और किसी कारणवश वह साथ नहीं रहना चाहते तो पंचायत महिला को अधिकार देती है कि कोई दूसरा मर्द उसे अपनी लुगायी बना सकता है। यहां तक तो यह प्रथा ही रहती है लेकिन जब इसमें सौदेबाजी जुड़ जाती है तो यह कुप्रथा बन जाती है। इस प्रथा में बच्ची से वयस्क बनी उस महिला की बोली लगायी जाती है। बोली लगाने वालों में कई पुरुष शामिल होते हैं। ज्यादा दाम देने वाला मर्द उस औरत को खरीद कर ले जाता है। और अगर महिला अपनी ओर से किसी पुरुष को चुनती है तो उसे कतई अधिकार नहीं होता है कि वह उसे अपना जीवन साथी बनाए। ऐसा ही एक ताजा मामला अजमेर की अदालत में चल रहा है। एक महिला अपनी छह महीने की बच्ची को गोद में लिए न्याय की आस में इधर-उधर भटक रही है। लेकिन पंचायत के तुगलकी फरमान के खिलाफ अदालत भी अपना फैसला देने में असमंजस में लग रही है। यह तो बानगी भर राजस्थान में तो ऐसी कई कुप्रथाएं चल रही हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि सरकार की नाक के नीचे यह कुप्रथाएं फल-फूल रही हैं और इनके खिलाफ कुछ नहीं किया जा रहा..। इन सड़ी-गली परंपराओं के खिलाफ सरकार को कटघरे में खड़ने के लिए मीडिया की तरफ से भी कोई नियमित प्रयास नहीं किया जा रहा है।
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