Tuesday, August 25, 2009

अपना घर, अपना शहर याद आता है

मम्मी की रोटी का समोसा,
पापा का दो रुपया।
अनमने से सुबह उठना,
नाक-भौं चढ़ाना।
मम्मी का चिल्लाना, पापा का बचाना,
बहुत याद आता है, सब कुछ बहुत याद आता है।
तैयार होकर साइकिल उठाना,
मेरा नखरे दिखाना, मम्मी का मनाना,
पेटीज और फ्रूटी की रिश्वत पर एक रोटी खाना।
स्कूल से लौटकर वापस आना,
दरवाजे पर मम्मी को देखकर खुश हो जाना,
बहुत याद आता है,दौड़कर मम्मी का चाय लाना,
रात में बार-बार उठकर पापा का मेरा कमरे तक आना,
पढ़ते हुए मुङो पाकर, सिर पर हाथ फेरकर वापस लौट जाना।
वो लाड़ और वो गुस्सा सब याद आता है।
दूर जाने के बाद अपना शहर, अपना घर बहुत याद आता है।

5 comments:

  1. जी हाँ दूर जाकर हर वो बाते याद आती है जो उस समय महत्वपूर्ण थी.
    बेहतरी अभिव्यक्ति दी है आपने

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  2. बस यादें , बस यादें रह जाती हैं...

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  3. बिल्कुल सही है ......ऐसा ही होता था.....

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  4. बहुत बढिया !!भावपूर्ण रचना है ।बधाई।

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