Friday, December 28, 2012

सबक ले सरकार और प्रशासन

दिल्ली में धारा-144 लगाना। मैट्रो स्टेशन बंद करना। पुलिस की प्रदर्शनों को रोकने की गैरवाजबि कोशिश थी। जिन्हें प्रदर्शन करना था, उन्होंने किया। सरकार ने जितना दमनात्मक रवैया अपनाया, जनता उतनी ही बागी हुई। पूरे मामले पर नजर रख रहे और इस पर कार्रवाई की नीति बनाने वाले लोगों को घटना की वजह से लोकर उसके दूरगामी असर के बारे में गहराई से सोचना चाहिए था। जो कि नहीं किया गया। अगर मामले के स•ाी पहलुओं, पहले घट चुकी घटना, मौजूदा समय में घट रही और •ाविष्य में पड़ने वाले प्र•ााव के मद्देनजर यह फैसला लिया जाता तो शायद यह आंदोलन उतना उग्र नहीं होता जितना की हुआ। दूसरी और सबसे अहम बात है, देश की जनता के मिजाज को समझने की। स•ाी प्रदर्शन किसी संस्था, या फिर किसी संगठन के बैनर तले नहीं थे। यह आंदोलन आम जनता का था। ऐसे में लाजिमी है कि कई आवाजें निकलें। यानी लोग अलग-अलग मांग कर रहे थे। विरोध के अलग-अलग तरीके अपना रहे थे। इन मांगों और विरोध के पीछे छिपी •ाावना को समझना जरूरी था। एक वजह के लिए इतनी बड़ी संख्या में लोगों का इकट्ठा होना अपने आपमें आप में एक नया अनु•ाव है। प्रशासन को •ाी इस बात का अंदाज शायद ही रहा हो। क्योंकि घटना कोई नई नहीं थी। मान लिया गया है कि ऐसे हादसे घटते ही रहते हैं। सो इसी खास घटना के लिए ही क्यों इतना हो-हल्ला? जवाब बेहद मुश्किल है। क्योंकि इससे ज्यादा खतरनाक मामला था, मणिपुर की मनोरमा का। आपको याद होगा कि कैसे कुछ सेना के लोगों ने बेहद क्रूरता के साथ इसका बलात्कार किया था। उसकी लाश किसी अकेले इलाके में मिली थी। उसकी योनी में सोलह गोलियां दागी गई थीं। दूसरा ही ऐसा मामला है कि छत्तीसगढ़ की सोनी सूरी का। •ांवरी देवी मामला •ाी कुछ कम दहशत पैदा करने वाला नहीं है। लेलेकिन कुछ वजहें जो मुझे समझ में आईं। एक आम व्यक्ति के तौर पर और एक मनोवैज्ञानिक के तौर पर। वो कुछ इस तरह से हैं। -यह घटना दिल्ली के •ाीड़-•ााड़ वाले इलाके मुनीरका में हुई। - उसके साथ जो लड़का था, वो लोगों की पहचान करने में सक्षम था। -लड़की •ाी गं•ाीर स्थिति में थी लेकिन जब •ाी होश आया उसने दोषियों को सजा दिलाने की मांग की। यानी इस मामले को मुद्दा बनाने के पीछे लड़की की दृढ़ इच्छा शक्ति •ाी थी। -और एक बात जो इस मामले को तूल देने अहम रही वह यह कि मीडिया का खुला सपोर्ट मिला। जैसे-जेसिका लाल हत्याकांड में मिला था। -रिपोर्टिंग इस तरह से की गई कि लोगों के संवेदना के स्तर पर जाया जा सके। - कुछ हेडलाइंस-पापा मैं जीना चाहती हूं। उन्हें सजा मिली या नहीं। आई वांट टू अलाइव एंड फाइट बैक। इस मामले पर मीडिया की लेखन शैली और ले आउट। एक शोध का विषय •ाी हो सकता है। -नर्सिंग की छात्रा थी। इस मामले में डाक्टर •ाी ज्यादा संवेदनशील लगे। मुद्दा बनाने के पीछे ये •ाी एक अहम वजह थी। कुछ लोग कह रहे हैं- -मामला क्योंकि दिल्ली में घटा। इसलिए बड़ा मुद्दा बना। -लड़की मध्यवर्गी परिवार की थी। इसलिए इसे तूल मिली। -लड़की दलित नहीं नहीं थी, सवर्ण थी। क्योंकि दलित लड़कियों के साथ तो अक्सर यह घटता है। उन्हें क्यों नहीं तूल मिलती है। तो दिल्ली सिवाए इसके और •ाी कई मामले आए हैं। सबसे हालिया मामला 26 दिसंबर का है जिसमें 42 साल की औरत का रेप हुआ। इस घटना के कुछ दिन पहले ही तुर्कमान गेट में एक सात साल की बच्ची से रेप हुआ। और •ाी कई मामले हैं। यहां सूची डालना मेरा मकसद नहीं है। सो इसे लंबा नहीं करूंगी। दूसरा मध्यवर्गीय परिवार से थी। लोग इस वजह से अंदाजा लगा पा रहे हैं क्योेंकि वह नर्सिंग की छात्रा थी। तो किसी को क्या पता कि उसे पढ़ाने के लिए शिक्षा के लिए लोन लिया गया हो। या फिर खेत बेचे गए हों। या जैसे-तैसे जुगाड़कर करके मां बाप ने यहां तक •ोजा हो। इसलिए कई लोग जो ऐसे सवाल खड़े कर रहे हैं उन्हें नहीं पता कि इस लड़की की पृष्ठ•ाूमि क्या है? वह किस जाति की है। सो जैसे कुछ शब्द राजनीतिक-प्रशासनिक शब्दावली में शामिल हो गए हैं वैसे ही कुछ शब्द ऐसे तरह के मामलों में •ाी बोले जाते हैं। जैसे-हम •ारोसा दिलाते हैं जल्द न्याय मिलेगा। कार्रवाई चल रही है। घटना शर्मनाक, दखद। वगैरहा, वगैरहा। वैसे ही कुछ संगठन ऐसे सवाल परंपरा के तौर पर उठाते हैं। लेकिन सवाल जायज हैं या नाजायज इन्हें परखने और उनका सामाजिक-राजनैतिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने की •ाी जरूरत है। और इन सवालों का क्यों न बेहतर और सधा हुआ जवाब •ाी दिया जाए। इस पूरे मामले से बस मैं एक ही बात कहना चाहती हूं। इसे आगे के लिए केस स्टडी के तौर पर इस्तेमाल करें। सरकार,प्रशासन सबक के तौर पर ले। जनता के मिजाज को समझे। प्रदर्शन, विरोधों का शमन (यानी उसके कारणों को खोज कर उनका निदान करना) किया जाए न कि दमन (बलपूर्वक दबाया जाए)। और जनता •ाी सबक ले कि प्रदर्शन को असरदायक और दूरगामी बनाने के लिए उसे क्या करना चाहिए। मैं फिर कहूंगी। इस पूरे मामले में सबसे अच्छी बात यह रही कि यह किसी संस्था,संगठन से प्रेरित नहीं बल्कि स्वत:स्फूर्त था।

Thursday, December 27, 2012

हैरान हूं मैं

हैरान हूं कि तुम हैरान नहीं हो /गुस्सा हूं कि तुम्हें गुस्सा नहीं आता/ बौखलाई हूं कि तुम बौखलाए क्यों नहीं हूं / क्योंकि बलात्कार के बाद •ाी मैं जिंदा हूं /पर, क्या केवल मैं ही जिंदा हूं?

Friday, December 21, 2012

...ताकि आगे इतना दर्द न मिले

मुझे किसी ने बताया कि लड़की ने लिखकर पूछा कि क्या उन्हें सजा हुई। (यह वही लड़की है जिसके लिए 16 दिसंबर की रात •ाारी गुजरी) दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत और जिंदगी के बीच झूल लड़की का यह सवाल जिसका जवाब हमें नहीं पता। क्योंकि हम नहीं जानते कि उन्हें सजा होगी या नहीं। होगी •ाी तो कितनी? क्या उस सजा से उस लड़की को तसल्ली मिलेगी? लड़की को मिली तकलीफ और उन लड़कों को मिली सजा में क्या बराबरी होगी? नहीं जानते। अचानक सोचा कि चलो दोनों की तुलना कर लें। सब साफ हो जाएगा। लड़की तो बोल नहीं सकती या झूठ •ाी बोल सकती है। डाक्टर से पूछकर सब साफ कर लेते हैं। तो आज डाक्टर ने बताया। लड़की गं•ाीर है। हम कोशिश कर रहे हैं कि वो बच जाए। लड़की •ाी जीना चाहती है। उसने ऐसा लिखकर बताया है। पर, अगर वो जी •ाी गई तो वह पूरी जिंदगी खाना मुंह से नहीं खा पाएगी। उसे पूरी जिंदगी नसों के जरिए खाना देना पड़ेगा। तो क्या, खाना तो खाती रहेगी। पर सबसे बड़ी बात तो यह है कि नसों के जरिए खाना देने पर हमेशा संक्रमण होने का डर रहेगा। और जो विटामिन और दवाएं पूरी जिंदगी के लिए चाहिए वो कतई सस्ते नहीं हैं। दूसरा इस लड़की को शार्ट सिंड्रोम नाम की बीमारी होने के •ाी आसार हैं। वो क्या? इस बीमारी में कुछ खाते ही फौरन शौच के लिए जाना पड़ता है। पर ऐसा क्या हुआ। बलात्कार के समय जब लड़की ने विरोध किया तो उन लोगों ने इसके पेट में लोहे की सरिया घुसा दी। जिससे इसकी छोटी आंत बुरी तरह जख्मी हो गई थी। इसलिए उसे निकालना पड़ा। और ये जो सारी दिक्कतें हैं, छोटी आंत न होने की वजह से हैं। ऐसी जिंदगी। यानी जब उसे नसों के जरिए पोषण दिया जाएगा। हर बार उसके दिमाग में वह हादसा जरूर घूमेगा। ऐसा ही तो होता है। जब कुछ गलत घटता है तो हम उन सारी चीजों को अवाइड करते हैं। जो उस हादसे से जुड़ी हों। लेकिन वो तो चाहकर •ाी ऐसा नहीं कर पाएगी। डाक्टर ने फिर कुछ बोलने के लिए जैसे ही अपने होंठ खोले। लगा अ•ाी •ाी बाकी है, क्या? अब इसके मां बनने में •ाी कई कठिनाईयां पैदा होंगी। इसके जननांग •ाी क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। और आंत के जख्मी होने का असर •ाी इस पर पड़ेगा। अगर मां बन •ाी गई तो...बच्चा बचना बेहद मुश्किल होगा। लड़की की हालत और उसके दर्द का हिसाब किस सजा से मिलेगा? उन्हें फांसी देने से..। उनका बधियाकरण करने से। उन्हें •ाीड़ के हवाले करने से। कैसे? क्योंकि किसी •ाी सजा में उतना दर्द नहीं है, जितना उस लड़की के हिस्से आ गया है। लेकिन सजा तो जरूरी है। सख्त से सख्त। जिससे कम से कम लोग ऐसा करने से पहले सोचें। आगे किसी लड़की, बच्ची या औरत को इतना दर्द न मिले। अब और नहीं। सहानु•ाूति नहीं न्याय चाहिए।