Tuesday, January 29, 2013

हे राम! अयोध्या धाम

अयोध्या, क्या कहें! राम जन्मभूमि या विवादों की भूमि। राम बेघर, सीता रसोईं ठंडी पड़ी। बीस साल से। राम को दोबारा वनवास। पहली बार चैदह बरस। अबकी तो बीते दो दशक। मां ने भटकाया वन-वन। प्रजा ने छीना भवन अलीशान। दिया तंबू का अस्थायी आवास हे राम, नाम लेकर आपका। कर रहे संग्राम। अभी करो आप इंतजार। राम कसम, मंदिर वहीं बनाएंगे। राम लला, हाय अल्ला, बीते बीस साल। अब तो आप लल्ला से हो गए होंगे जवान आपके साथ है, शिवसेना, राम सेना और वानर सेना। गरीबों के लिए सरकार लगाती है, सर्दियों में रैन बसेरा। कुछ दिनों में आएगा फैसला, जरूर आएगा। हमारे हक में। क्या हुआ जो पहली बार तीन महीने की जगह 17 साल लगे। खर्च आया आठ करोड़। कितना भी हो बर्बाद। हजारों मरें। पर हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे। इंतजार और सही। देश की करीब 27 फीसदी जनता के सिर पर भी तो छत नहीं। फुटपाथ, झोपड़पट्टी, खानाबदोश जैसी जिंदगी गुजारते हैं, ताउम्र कई लोग। आपके लिए तो हमने दंगा कर दिया। खून बहा दिया। घर उजाड़ दिए। आपके साथ तो करोड़ों की जनता। पर, इनके साथ तो बस छल प्रपंच। गरीब को रोटी और छत तो मयस्सर नहीं। ऊपर से पड्यंत्र घनघोर। सरकार कर रही अनूठा प्रयास। बिना उन्नति, बिना विकास। गरीब को गरीब न रहने देने का प्रयास। क्या बात है, सरकार। रोज के तीस रूपए, बत्तीस रुपए। कमाई बढ़े न बढ़े। पर छू मंतर, लो आज से न कहना खुद को दरिद्र नारायण। क्योंकि, सरकार नहीं चाहती कि देश में कोई रहे गरीब या देश में रहे गरीब। मसला कुछ भी हो। सरकार तो सरकार। मानों ने मानों। आपको पता चले न चले। लो हो गए दस्तावेज तैयार। भई देश में न के बराबर बचे गरीब। छू...छू मंतर। महिमा अपार। चमत्कार। जादू। या बाजीगरी। खैर, इनकी छोड़ो। आप बेखौफ रहो। मस्त रहो। अपने तंबू में। हम तो मंदिर वहीं बनाएंगे। खामोश! अब तो आप चाहो न चाहो। चाहें रिरियाओ। सदियां बीत गईं। विवाद पर, और भी बीत जाएं। लेकिन......