Wednesday, May 22, 2013

घूरते पहाड़ तोड़ते बच्चे


बुंदेलखंड के महोबा के कुलपहाड़ इलाके में पहाड़ों के खनन के दौरान पत्थर तोड़ता एक बच्चा   

घूरते हैंये बच्चे जब पूछो पढ़ाई क्यों नहीं करते
घूरते हैंये बच्चे जब पूछो खेल क्यों नहीं खेलते
बौखला जाते हैं, ये बच्चे जब पूछो उम्र क्या है?
तिलमिला जाते हैं, ये बच्चे जब बार-बार ये सब पूछो।
देखकर दूर से किसी शहरी को दूर भाग जाते हैंये बच्चे।
पीछाकर फिर दोहराव सवाल तो कहते हैंपता नहीं!
दूर पल्लू सिर पर लिए, कृशकाय खड़ी एक औरत।
देख रही अपने इन बच्चों को गुस्से और खीझ से।
पूछने पर ये सारे सवाल झल्लाती और खीझती है।
पढ़ाई से रोटी तो नहीं मिलती।
रोटी के लिए तोड़ने पड़ते हैं, पत्थर।
खेलेंगे तो रोटी कैसे खाएंगे।
रोटी के लिए चलाना पड़ता है, फावड़ा।
उम्र क्या करोगे पूछकर।
फिर अलापोगे सरकारी अलाप।
बताओगे शिक्षा का अधिकार है, इन्हें। 
तो सुन लो साल से ऊपर हो चुके हैं, ये बच्चे।
फिर वो चुप हो जाती है, शून्य में खो जाती है।
शायद अपने इस झूठ से आत्मग्लानि से भर जाती है।
फिर संभलती है, पल्ला सिर पर चढ़ाती है,फावड़ा उठाती है।
घूरती है मुझे और उन सभी सवालों को।
गरीबी से बड़ा गुनाह तो नहीं है, ये झूठ।
आत्मग्लानि फिर गुस्से में बदलती है, खीझती है।
और कहती है आधी ट्राली बांकी है,अभी पत्थर।
मत बर्बाद करो वक्तनियमों से रोटी तो नहीं मिलती।  


अयोध्या -सालों बीते पर अटक गया एक पल

16 दिसंबर, 2012 में भी कड़ी गई अयोध्या की सुरक्षा 

 कभी -कभी कोई पल सदियां तबाह कर देता है। उस पल के ऊपर से कई दिन, महीनें और साल दर साल गुजरते जाते हैं। पर वो पल गुजरता ही नहीं। 16 दिसंबर,1992 का एक पल। दो दशक से भी ज्यादा समय इस पल के ऊपर से गुजर चुका है लेकिन अब तक यह पल नहीं गुजरा। दो समुदायों के बीच पड़ी दरार अब एक खांई बन चुकी है। फैजाबाद के हर चैराहे, शहर और गांव के भीतर दंगा फसाद कराता ये पल लगातार पनप रहा है। राजनेताओं और दबंगों का हथियार बनें इस पल की धार दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। इस धार का शिकार हो रहे हैं आम लोग। जिनके लिए अयोध्या और बाबसी मस्जिद से ज्यादा मायनें रखती है, दो वक्त की रोटी। पिछले एक साल में करीब चार से पांच बार यहां जाना हुआ। हर बार कोई न कोई सांप्रदायिक मसला खबर बननें को आतुर दिखाई पड़ा। कभी फैजाबाद चैक में कभी टांडा में, तो कभी किसी दूर दराज के गांव में। इस बार फैजाबाद जिले के दो गांवों सैया और जोगियापुर से ये पल गुजरा। हिंदू दलितों की बस्ती सैया और मुस्लिमों की बस्ती जोगियापुर। जोगियापुर को लोग फैजाबाद का इस्लामनगर भी कहते हैं। अबकी करीब दो महीनें पहले फैजाबाद जाना हुआ। हर बार की तरह इस बार भी हिंदू और मुसलमान के बीच एक झगड़े की खबर मिली। हमेशा की तरह झगड़े की जड़ तक जानें के लिए दोनों पक्षों से पूछताछ का मन बनाया। सबसे पहले पहुंची हरिजनों के एक गांव सैयापुर। झगड़े में शामिल परिवार से मिली। हिंदू दलित परिवार ने अपनी आप बीती सुनाई। मारपीट के दौरान सिर फूटने से घायल एक व्यक्ति ने कहना शुरू किया, हमारे खेत जोगियापुर गांव के करीब हैं। हम लोग बहुत शरीफ लोग हैं। हमारा किसी से लड़ाई झगड़ा आज तक नहीं हुआ। लेकिन उस दिन खेत में कुछ बकरियां घुस आईं तो हमनें उन्हें लखेद दिया। बस अब का बताएं उन बकरियों की मालकिन ने तो गाली गलौच शुरू कर दीं। हमें भी गुस्सा आ गया और हमनें भी दुई चार सुना दईं। औरत जात के मुंह अब कौन लगे? हमनें उससे कहा कि आगे से तुम्हारी बकरियां हियां न दिखाई दई जाएं। जो लाठी उसनें बकरियों को लखेदने के लिए ले रखी थी, वही लाठी उसनें हमारे ऊपर चला दी। हमनें भी गुस्से में एक झापड़ रसीद कर दिया। बस उनकें यहां से दस बारह जनें आकर हमारे चाचा, हमें और हमारे भाई को पीट गए। मुसलमान हैं, सो प्रशासन भी उनकी तरफ है। दूसरे पक्ष की सुनने के लिए आगे के गांव जोगियापुर पहुंची। इस गांव में करीब सवा सौ घर हैं, सभी घर मुसलमानों के ही हैं। घर पूंछकर उस परिवार के पास पहुंची। वहां उस औरत से मुलाकात हुई। जिससे झगड़ा हुआ था। उसके भी चोट आई थी। अब उससे उस झगड़े की हकीकत जानने के लिहाज से मैंने पूछा क्या हुआ था, उस दिन। हम तो शरीफ लोग हैं, कभी भी हमारी किसी से लड़ाई नहीं हुई। पूरे गांव में पता लगा लो। लेकिन उस दिन तो उन लोगों ने बात शुरू की। हम अपनी छेरी को चरा रहे थे। अब जानवर तो जानवर क्या करें। बिदक गया। उनके खेत में चला गया। खेत में खड़े उस व्यक्ति ने हमें पहले गाली दी। फिर मारना शुरू कर दिया। बाद में उसके घर के लोग यहां आए और हमारे पति और हमें खूब मारा। अब हम तो मुसलमान हैं, तो प्रशासन भी उनकी तरफ है। हमारे आदमी जेल में बंद हैं। गांव में भी जगह-जगह आग लगा गए। आग की बात सामने आई तो पूछा आग क्यों लगाई। जोगिया पुर के एक बुजुर्ग ने बताया कि हिंदू हैं, सो इस लड़ाई के बहानें पूरा गांव ही तबाह करना चाहते थे। अब इस बात की सच्चाई जानने के लिए फिर सैयापुर गई। पूछा तो वो लोग आग बबूला हो गए और बताया कि आग खुद उन लोगों ने लगाई है। जिससे मामला बड़ा बन जाए। मुसलमान हैं तो मुआवजा तो जल्दी ही मिल जाएगा। कुछ लोगों को तो मिल भी चुका है। दोनों ही गांवों में पुलिस की टुकड़ियां तैनात थीं। छावनीं में तब्दील हो चुके दोनों गांव का माहौल कर्फ्यूग्रस्त था। अब दोनों पक्षों के बाद सोचा क्यों न पुलिस वालों से हकीकत पता करूं। तो पुलिस वालों ने कहा मैडम अब आप ही बताईये। क्या गांवों में किसी के जानवर का किसी के खेत में घुस जाना नई बात है। ये झगड़े तो होते ही रहते हैं। पर जबसे अयोध्या कांड क्या हुआ। बस हर झगड़ा हिंदू और मुसलमान का चश्मा चढ़ाकर देखा जाने लगा। पुलिस तैनात करने की वजह ये है कि कहीं ये व्यक्तिगत झगड़ा सांप्रदायिक दंगा न बन जाए। कुछ दिनों पहले एक दुकानदार को पांच रुपए कम देनें से शुरू हुआ झगड़ा, हिंदू बनाम मुस्लिम बन गया।