Wednesday, March 13, 2013

जुम्मन का घर फिर क्यों जले...

फैजाबाद गयी तो टांडा गए बगैर रहा नहीं गया । फैजाबाद से करीब 45 किलोमीटर दूर बसे अंबेडकर नगर का एक कस्बा है, टांडा । लुंगी और गमछा के लिए प्रसिद्ध कस्बे में इन दिनों सांप्रदायिक तांडव चल रहा है । वैसे तो उत्तर प्रदेश के लिए सांप्रदायिक बलवा कुछ नयी बात नहीं है । लेकिन यह मामला कुछ हालिया है, और किस्मत से यहां जाने को भी मिल गया । सो देखने परखने को मिला कि आखिर कैसे दो खास समुदाय के लोग अचानक भिड़ जाते हैं। कैसे मरने औऱ मारने वाला इंसान से पहले हिंदू या मुसलमा हो जाता है ?नहीं-नहीं अचानक तो कुछ भी नहीं होता । हाल ही में मेरे दोस्त ने एक शेर सुनाया था, वक्त करता है परवरिश मुद्दतों, हादसा यक बा यक नहीं होता। । तो वाकई टांडा में भी जो हो रहा है या जो हुआ अकस्मात नहीं हुआ । इस कस्बे के मोहल्ले अलीगंज में बेहद रसूक वाले हिंदू युवा वाहिनी के जिला अध्यक्ष राम बाबू गुप्ता की हत्या तीन मार्च को कर दी गई । रामबाबू के घर का पता पूछने पर पास खड़े रिक्शे वाले ने कहा हंशराज वाले गुप्ता जी , जो अल्लाह को प्यारे हो गए। दरअसल हंशराज के नाम से उनका मेडिकल स्टोर है। मैंने कहा जी बिल्कुल वही । रिक्शे में बैठी तो चालक से कुछ जानने की गरज से पूछा आखिर हत्या क्यों कर दी गई। जी राजनीती का अंत तो मौत ही है। कुरेदने के लिहाज से मैंने फिर पूछा क्या ये हिंदू-मुस्लमान से जुड़ा मामला है। रिक्शे वाले का जवाब या यों कहें सवाल के जवाब में एक सवाल बेहद तीखा और मुझे चिढ़ाने वाला जैसा लगा। क्या इससे पहले इलाके में हत्या नहीं हुईं ? जिंदा रहते हैं तब भी लड़ाते हैं। और मरने के बाद वसीहत छोड़ जाते हैं अपने चमचों के नाम कि हमने बड़ी मुश्किल से संप्रदाय और धर्म का जहर देकर इस शहर को बर्बाद रखा है, उसे आगे भी आबाद न होने देने का जिम्मा तुम्हारा है। न मारने वाला राम का भक्त था न मारने वाला रहीम का । गुप्ता जी तो सात भाई हैं सो दबंगों सा दबदबा है । न होता तो एक हत्या के बदले इतने घर बर्बाद न कर देते। फिर हत्या तो किसी एक ने करवाई थी तो फिर इतने मुसलमानों का घर क्यों फूंक दिया ? रिक्शेवाले की बातें सुनते सुनते लगा शायद अदम गोंडवी ने भी एसे ही हालात के लिए लिखा होगा।..गर गल्तियां बाबर की थीं, तो जुम्मन का घर फिर क्यों जले/एसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िए । शायद यह संवाद औऱ चलता लेकिन इससे पहले ही घर घा आ गया। लोहे के चैनल लगे इस घर में लोगों का तांता लगा था। मैंने पहुंचकर अपना परिचय दिया। और उनके किसी सगे संबंधी से मिलने की इच्छा जताई । छोटे भाई श्याम बाबू ने बताना शुरू किया । टांडा के भीतर हिंदुओं में अगर कोई सशक्त परिवार है तो बस हमारा ही । मुसलमानों की हिम्मत नहीं पड़ती थी । हालांकि इस पूरे मोहल्ले अलीगंज में तीन ही घर हिंदुओं के हैं। इनमें से दो तो सीधे साधे गरीब लोग हैं । उनकी हिफाजत तो हम ही लोग करते हैं । हिंदुओं का दबदबा कायम था राम बाबू की वजह से । आंखों की किरकिरी बन गए थे ये, सो..ले ली जान । पीछे से एक आवाज आई कहते तो घूम रहे हैं कि सबसे मजबूत खंभा उखाड़ दिया। पीछे पलटकर मैंने जानना चाहा किसी खास व्यक्ति ने एसा कहा क्या, तो उन जनाब ने कहा, नहीं खबरें उड़ रही हैं। यानी कनबतिया हो रही हैं। या शायद राम बाबू को एक हिंदुत्व का एक मजबूत खम्भा मानने वाले लोगों का अपना विश्लेषण भी हो सकता है । जो भी हो...। मैंने फिर पूछा ये अचानक हुआ या फिर हाल में कुछ संकेत मिले थे आप लोगों को। नहीं ताक में तो ये लोग पहले से ही बैठे थे। 15 अगस्त 2012 को एक हिंदू लड़की को एक मुसलमान लड़के ने छेड़ दिया था। राम बाबू ने उसकी गिरफ्तारी के लिए मोर्चा खोल दिया था। 22 अगस्त को हजारों लोगों के साथ मिलकर प्रदर्शन किया। मजबूर होकर प्रशासन को हरकत में आना पड़ा। तब जाकर एफआईआर दर्ज हुई। इससे पहले भी इसी तरह का एक मसला 2010 का है। तब भी राम बाबू ही बीच में कूदे थे। आरोपी इस बार भी मुसलमान समुदाय का था। फिर उन्होंने बताया अयोध्या में जब मस्जिद गिरी थी, तब भी हजारों मुसलमानों ने हमारा ही घर घेरा था। कई और किस्से बताए। और फिर इन किस्सों का निचोड़ भी बताया कि दरअसल मुस्लिम समुदाय के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा हमारा ही परिवार है। श्याम बाबू खुद भी विश्व हिंदू परिषद के सदस्य हैं। उनकी बातें सुनते-सुनते मुझे रिक्शेवाले की बातें भी याद आ रही थीं। लगा राम बाबू श्याम बाबू के नाम वसीहत छोड़ गए हैं। वसीहत जिसमें लिखा है, अब इस संप्रदाय को जीवित रखने का जिम्मा तुम्हारा है। उन्हेंने रामबाबू बनाम अजीमुल हक यानी उस अंबेडकर नगर के मुस्लिम विधायक की लड़ाई को बड़े एहतियात से हिंदू बनाम मुस्लिम बना दिया था। नहीं तो सच ही तो है हत्याएं तो रोज ही होती हैं। उसी दिन के अखबार में पास के ही गांव में एक युवक की हत्या हुई थी। कसी ने नहीं पूछा था कि इस हिंदू युवको को किसने मारा ? क्या मुसलमान ने ? मैंने फिर पूछा पता चला है कि जिस दिन यानी तीन मार्च को रामबाबू की हत्या हुई। उसी दिन आधी रात को यहां से करीब 500 से 700 मीटर की दूरी पर बसी एक बस्ती धुरिया में कई घर हिंदू संगठन के लोगों ने जला दिए । उन्होंने इस आरोप से इनकार तो किया पर इकरार के साथ। हमने एसा कुछ नहीं किया। हम सबकुछ कानूनी प्रक्रिया से चाहते हैं। लेकिन दूसरे ही पल उन्होंने यह भी कहा किसी दल के नेता को मारकर यूं ही थोड़े बच जाओगे । उनकी पत्नी संजू देवी से मिली। रो-रोकर उनका बुरा हाल था। हलक से आवाज नहीं निकल रही थी। बमुश्रिकल 36-37साल की रही होंगी। बस एक ही बात वो दोहराई जा रही थीं कि हत्यारे को पकड़ा जाए। पहलवान ही है उनका हत्यारा। उसे सजा मिले। पहलवान यानी वहां का सपाई विधयाक अजीमुल हक। दुश्मनी की त्रासदी यही होती है कि असल दुश्मन से ज्यादा दुश्मन के चहेतों पर वार करती है । हर दुश्मनी की तरह इस दुश्मनी की परिणति भी यही हुई । यकीनन इसी तरह अयोध्या भी सांप्रदायिक हुई होगा । इसी तरह गुजरात ।