Thursday, January 5, 2012

एक और गंगा मगर सियासी!

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी राष्ट्रीय पुष्प की तुलना राष्ट्रीय नदी से कर गए। नकवी की जुबान फिसल गई या फिर उनका सामान्य ज्ञान कम पड़ गया! क्या हुआ? ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। नकवी ने अपनी पार्टी की पवित्रता का बखान करते हुए उसकी तुलना गंगा से कर दी। हुआ यूं कि बसपा के दागी मंत्रियों को पार्टी में शामिल करने पर भाजपा की कढ़ी आलोचना हुई। खुद पार्टी ही इस मुद्दे पर दो धड़ों में बंट गई पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली और सुषमा स्वाराज को नितिन गणकरी का यह फैसला नहीं भाया। बसपा के दरबदर किए गए मंत्रियों को भाजपा में शामिल करने को लेकर उठ रहे सवालों को शांत करने के लिए नकवी सामने आए और उन्होंने कहा, कमल दल (भाजपा) गंगा जैसी पवित्र पार्टी है, जिसमें तमाम नाले आकर गिरते हैं। मगर इससे गंगा को कोई फर्क नहीं पड़ता। बसपा से बाहर किए गए राष्ट्रीय ग्रामीण मंत्री बाबू लाल कुशवाह और श्रम मंत्री बादशाह सिंह भाजपा में शामिल हो गए। हो-हल्ला मचा कि भ्राष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली पार्टी ने भ्रष्टाचारियों को अपने दल में कैसे शामिल कर लिया। कहने वालों ने यहां तक कह डाला कि भाजपा के वरिष्ठ एवं वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी एक तरफ भ्रष्टाचार विरोधी यात्र कर रहे हैं और दूसरी तरफ भ्रष्टाचारियों को पार्टी में शामिल किया जा रहा है। बसपा के पूर्व बाबू लाल कुशवाहा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में घोटालों और बहुचर्चित सीएमओ हत्याकांड में कथित तौर पर लिप्त हैं। बादशाह सिंह की बात करें तो इन्हें लोकायुक्त की सिफारिश पर पद दलित किया गया। इन पर भी पद का दुरुपयोग करने और भ्रष्टाचार जैसे संगीन आरोप हैं। सीबीआई दोनों मामलों की जांच कर रही है। मायावती अपनी पार्टी के दागी मंत्रियों को दरकिनार करने में लगी हैं। इससे पहले भी कई और मंत्री निकाले जा चुके हैं। मायावती अपनी पार्टी को साफ करने में लगी हैं। इससे पहले भी चार मंत्री वन मंत्री फतेह बहादुर सिंह, प्राविधिक शिक्षा राज्य मंत्री सदल प्रसाद, अल्प संख्यक कल्याण एवं हज राज्य मंत्री अनीस अहमद खान उर्फ फूल बाबू और मुस्लिम वक्फ राज्य मंत्री शहजिल इस्लाम अंसारी को तत्काल प्रभाव से मंत्रिमंडल से निष्कासित किया जा चुका है। उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री ने इन मंत्रियों को इस्तीफा देने का मौका भी नहीं दिया। अगर संसदीय प्रक्रिया के जानकारों की मानें तो किसी मंत्रिमंडल से निष्कासिक करने से पहले मुख्यमंत्री पहले मंत्रियों से इस्तीफा देने को कहते हैं, इसके बाद अगर मंत्री अड़े रहें तो उन्हें बर्खास्त किया जा सकता है। इतना ही नहीं एक अन्य राज्य मंत्री ददन प्रसाद ने मौके की नजाकत को समझते हुए खुद ही इस्तीफा दे दिया। बसपा प्रमुख विधान सभा चुनावों से पहले अपनी पार्टी की सफाई करने में जुटी हैं। लेकिन भाजपा को क्या हो गया कि बसपा के दर बदर किए दागी मंत्रियों को अपने दामन में समेटने में लगी है। नकवी ने शायद इसी पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए कहा होगा कि भाजपा गंगा है। जैसे गंगा में कई नाले आकर गिरते हैं लेकिन गंगा की पवित्रता ज्यों की त्यों बनीं रहती है। गंगा किसी में भेदभाव नहीं करती। लोग पाप धुलने के लिए गंगा की शरण में जाते हैं, वैसे ही भाजपा में आकर सब पवित्र हो जाएंगे। अब चाहें कुशवाहा हों या फिर बादशाह सिंह क्या फर्क। लेकिन नकवी साहब को कौन समझाए कि पापियों के पाप धुलते-धुलते राम की गंगा मैली हो गई है! दो दशक से भी ज्यादा समय से गंगा की सफाई में सरकारी खजाने के हजारों करोड़ खर्च हो चुके हैं। देश की राष्ट्रीय समस्याओं में गंगा की सफाई शीर्ष पर है। ऐसे में नकवी साहब कमल दल से गंगा की तुलना करने में अड़े हैं।

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