Monday, October 29, 2012

अंधेरे को रोषनी का इंतजार ‘‘हमार पुरवा मा कब उजियारा होई ?’’ लगभग अधेड़ हो चुके उत्तर प्रदेष के जिला चित्रकूट के भभई गांव में चुनकी का पुरवा के मुन्नी लाल का सवाल दरअसल अधिकतर ग्रामीण आबादी का है। सरकारी आंकड़े भी देष की इस अंधेरी तस्वीर के गवाह हंै। 2011 की जनगणना के मुताबिक तकरीबन 55 प्रतिषत गांवों में बत्ती नहीं पहुंची है। देष की करीब सत्तर प्रतिषत आबादी गांवों में बसती है। और आज भी देहातों के आधे से ज्यादा घरों में कैरोसिन का दिया जलता है। मार्च, 2005 में षुरू हुई राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत पांच सालों के भीतर सौ प्रतिषत गांवों को रोषन करने की योजना बनाई गई थी। मजेदार बात यह है कि हम इसके कागजी आंकड़े भी नहीं जुटा पाए। इस योजना की सबसे बड़ी खासियत गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) और पिछड़ी जाति के लोगों को मुफ्त बिजली देना था। लेकिन इस मोर्चे पर तो हम नाकाम ही रहे। क्योंकि जिन गांवों में बिजली पहुंच भी गई है वहां की अधिकतर दलित बस्तियां अंधेरे में ही हैं। उत्तर प्रदेष के महोबा के रैपुरा कलां, छानी कलां बनारस के मेहदीगंज की मुसहर बस्ती, धरसौना, की दलित बस्ती। सूची लंबी है। कहीं खंभे हैं तो कहीं खंभे भी नहीं है। असल में सरकारी आंकड़ों में खंभे गाड़ने भर से मान लिया जाता है कि बिजली पहुंच गई है। ऐसे में बिजलीकरण से ज्यादा योजना खंभाकरण की लगती है। यानी सरकारी आंकड़ों की जमीनी स्तर पर पड़ताल करें तो यहां अंधेरा नहीं बल्कि घुप अंधेरा नजर आएगा। ये तस्वीर केवल उत्तर प्रेदेष की नहीं बल्कि देष के सभी गांवों की है। तीस जुलाई को देष के 19 राज्यों में अचानक एक साथ बिजली चली गई। इनमें से अधिकांष इलाके षहरी थे सो जमकर हो - हल्ला कटा। प्रदर्षन हुए, तोड़फोड़ हुई। सरकार हरकत में आ गई और कुछ घंटों में ही संकट खत्म हो गया। सोचो कुछ घंटों का अंधेरा षहरी जनता को बेचैन कर गया तो फिर गांवों में छाया लंबे समय से घुप अंधेरा क्या उन्हें काटने को नहीं दौड़ता होगा ?

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