Sunday, September 6, 2009

मोहे काहे विदेश..

शादी-ब्याह के मौकों पर लड़की के घर की महिलाएं एक गीत गाती हैं। बाबुल भइया के लाने महल-दुमहला, मोहे काहे परदेश.. मुङो पूरा गाना याद नहीं। लेकिन इसका लब्बोलुआब है कि भाई को तो आप घर में रखेंगे। लेकिन मुङो परदेश क्यों भेज रहे हैं। यहां परदेश से मतलब विदेश नहीं बल्कि लड़की की ससुराल है। हाल ही में कई ऐसी घटनाएं सामने आयीं जिनमें मां-बाप ने वाकई में अपनी बेटियों को विदेश में ब्याह दिया। उन्होंने यह पड़ताल करने की जरूरत भी नहीं समझी की लड़के का चाल-चलन कैसा है। हमारे देश के लोग विदेश जाते हैं और वहां से विदेशी बाबू होकर यह कहते हुए लौटते हैं कि उन्हें भारतीय संस्कारों वाली भारतीय बाला से ही शादी करनी है।
लड़की के मां -बाप इसे अपनी लड़की का सौभाग्य समझकर फौरन शादी करने को तैयार हो जाते हैं। अब चूंकि लड़का विदेशी है, उसके पास सीमित समय है।इसलिए शादी भी अफरा-तफरी में होती है। लड़की के घरवाले इस आफर को ठुकराना नहीं चाहते और अपनी लाडो को भेज देते हैं विदेशी बाबू के साथ। वहां न जान न पहचान। अभी तक जो लड़का भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर भारतीय नारी को अपनी संगनि बनाने को आतुर था अब उसे ही भारतीय संस्कृति पिछड़ेपन का प्रतीक लगने लगती है। इस पूरी रामकथा के पीछे मेरी मंशा उस लड़की की कहानी लिखने की है जो समृद्ध मां बाप की बेटी है, बेहद चंचल, चुलबुली थी। कक्षा में अव्वल आने वाली। बेहद मासूम, खुबसूरत। फिलहाल वो सरिता विहार के एक एमबीए कालेज से पढ़ायी कर रही है। लेकिन इस बीच उसके साथ जो घटा वह उन मां बाप के लिए सीख है, जो बगैर किसी जांच-पड़ताल अपनी बिटिया को सात समंदर पार किसी अजनबी के साथ भेज देते हैं। अभी कुछ दिन पहले मैं अपनी दोस्त के घर मैं इस लड़की से मिली। उसने अपनी पढ़ायी की बात छेड़ दी। लेकिन एक बात जो उसने कही कि उसका आत्मविश्वास बिल्कुल चुक चुका है। मैं किसी को फेस ही नहीं कर पाती। उसके जाने के बाद मैंने उसकी आवाज, और खुबसूरती की तारीफ मैंने अपनी दोस्त से की। साथ उसके इस डर के बारे में भी पूछा। जब मेरी दोस्त ने बताया कि इसकी शादी हो चुकी है।दुबई में रहने वाले एक युवक से इसकी शादी की गयी। शुरू-शुरू में लड़की अपने देश में ही रही। जहां ससुराल वालों ने उस पर दहेज लाने का दबाव बनाया। ससुरालियों की प्रताड़ना के बारे में लड़की ने अपने मां-बाप को कई बार बताया। लेकिन हर बार मायके से वही घिसी-पिटी सलाह, बेटा एडजस्ट तो करना ही पड़ता है। खैर इस बीच लड़की के पति ने उसे अपने साथ दुबयी ले जाने का प्लान बनाया। लड़की को लगा अब उसकी मुसीबत खत्म हो गयी। लेकिन पति यहां उसे अपने साथ दंपति जीवन बिताने नहीं बल्कि उसे बेचने लाया था। इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब एक दिन पति की गैर हाजिरी में कई लोग उसके घर आ धमके। खैर लड़की ने किसी तरह उनसे पिंड छुड़ाया। अपने गहने वगैरहा बेचकर फ्लाइट लेकर दिल्ली आ गयी। तीन-चार दिन दिल्ली भटकने के बाद वह अपने घर पहुंची। उस लड़की की दाग मैं इसलिए देना चाहूंगी क्योंकि वह लड़की बाइज्जद अपने घर लौट आयी। उसने यह बात जब अपने घर वालों को बतायी तो उन्होंने ससुरालियों को तलब करने की बजाए इस मामले को दबाने की मंशा से उसे दिल्ली में एमबीए करने भेज दिया। कानूनी पचड़े में वह नहीं पड़ना चाहते। वजह हमारे भ्रष्ट एवं सुस्त कानूनी प्रक्रिया का होना हो सकती है। मेरा मकसद यहां कानून व्यवस्था पर उंगली उठाना नहीं है। लेकिन क्यों मां-बाप अपनी बिटिया को सात समंदर भेजने से पहले कोई पड़ताल नहीं करते। क्यों बेटी को विदेश ब्याहने को स्टेटस सिंबल समझते हैं।
आखिर में मुङो अपने घर में होने वाली चर्चा की याद आ गयी मैंने अक्सर लड़की के मां-बाप को यह कहते सुना है कि बिटिया के ण से उण हो जाएं बस गंगा नहाएंगे। बिटिया कोई उधार नहीं है जिसे आप दहेज देकर चुकता करें। गाय की तरह किसी भी खूंटे से बांधने से पहले यह तो सोंचे की यह खूंटा किसी कसाई का तो नहीं।

6 comments:

  1. 'गाय की तरह किसी भी खूंटे से बांधने से पहले यह तो सोंचे की यह खूंटा किसी कसाई का तो नहीं।'
    बहुत सही कहा आपने --
    सुन्दर लेखन

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  2. आप ने एकदम दुरुस्त फ़रमाया है, साथ ही महत्वपूर्ण और सारगर्भित मुद्दा उठाया है....

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  3. सटीक विचारणीय लेख. धन्यवाद.

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  4. देश के अंदर ब्‍याह करें या विदेश में .. शैतान तो कहीं भी मिल जाते हैं .. भ्रष्ट एवं सुस्त कानूनी प्रक्रिया ही सबसे बडी मुसीबत है !!

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  5. बेहतरीन विचार..उम्दा पोस्ट.

    'ऋ' अक्षर ऋण में लिखने के लिए यदि आप बारहा इस्तेमाल कर रहे हैं तो R R u टाइप करें.

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