Sunday, April 19, 2009

बिहार में सिलिपिंग पार्टनर है भाजपा
बिहार में स्लीपिंग पार्टनर है भाजपासाइलेंट किलर के रूप में मशहूर नीतीश ने अपनी सहयोगी भाजपा को पिछले तीन सालों में तीन कोस पीछे कर दिया है। सूबे की तरक्की को नीतीश ने अपने अभामंडल से इस कदर जोड़ रखा है कि भाजपा के पास सिवाए नीतीश वंदना के और कोई चारा नहीं है। सूबे के उमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी नीतीश के मोहपाश मेंप इस कदर बंधे हैं कि सरकार का हर निर्णय जैसे नीतीश का फैसला होता है। यह बात समझ से परे है कि सुशील मोदी आखिर उपमुख्यमंत्री पद से इतने संतुष्ट क्यों हैं? वरना क्या कारण था कि सुशील मोदी प्रमुख सहयोगी दल के नाते नेतृत्व की बागडोर स्वंय लेने का दावा नहीं ठोकते। कंाग्रेस ने कई राज्यों में बारी-बारी से मुख्यमंत्री का समझौता समझदारी से निभाया है।वैसे भाजपा के लिए जरूर गठबंधन का यह फार्मूला कड़वा रहा है। और हर बार इस बाबत भाजपा की किरकिरी हुई। हालंाकि यह कहना न्यायसंगत नहीं होगा कि भाजपा अतीत से संज्ञान लेकर बिहार में हाथ-पंाव नहीं मार रहीं है। बेशक नीतीश ने अपने मैनेजमेंट के बूते मीडिया समेत जनता को अपनी हर कवायद का लोहा मनवाया है। अब जब चुनाव सिर पर है नीतीश शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की भूख को बिहार में ही पूरा करने को जीजान से जुटे हैं। इस कवायद में नीतीश जहां जाते हैं,इंजीनियरिंग और मेडिकल कॅालेज का प्रसाद बंाट कर आ जाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि नीतीश की ये घोषणाएं जब पूरी होगी तब होगी। सरकार के पास फौरी उपाय का नितंात अभाव है। ‘ौक्षणिक माहौल बनाने के साथ-साथ शिक्षा की गुणवता भी नीतीश की हड़बड़ी का शिकार हुआ है। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए बड़ी तादाद में बहाल किए शिक्षकों के बारे में बिहारी मानस की राय बताने की जरूरत नहीं है। अंको के आधर पर हुई नियुक्ति की चयन प्रक्रिया पर विवाद हो सकता है लेकिन जो शिक्षक बहाल हुए हैं। उनकी गुणवता,कार्यकुशलता तथा इस पेशे के प्रति रूचि पर गंभीर प्रश्नों के जबाब भी इस सरकार को देने होगें।क्या आप नियुक्ति में उम्र को नजरअंदाज कर उत्साहहीन उम्मीदवारों को ’’ कुछ नही ंतो यही ’’ की तर्ज पर नौकरी बंाट रहें हैं ? कॅामन स्कूल सिस्टम के बारे में खूब हो-हल्ला मचा। इसी सरकार ने मुचकुंद दुबे की अध्यक्षता में ’ कॅामन स्कूल सिस्टम ’ आयोग गठित किया। आयोग ने 8 जून 2007 को सरकार की अपनी रिपोर्ट भी दे दी। सरकार को यह बताना चाहिए कि वह इस पर क्यों कुंडली मारे बैठी है। क्या यह मीडिया हाइप के लिए किया गया स्टंट था। सिर्फ शिक्षा के के क्षेत्र में ही नहीं तमाम क्षेत्रों में नीतीश गरजने वाले बादल ज्यादा साबित हुए हैं। नीतीश आत्मविश्वास से इस कदर भरे हुए हैं कि उन्होंने कुछ दिनों पहले दो टूक कह दिया कि बिहार में आम चुनाव आडवाणी को आगे कर नहीं, राज्य सरकार के विकास को आगे कर लड़ा जाएगा। आश्चर्य है कि भाजपा को यह बयान भी परेशान नहीं कर रहा है। जब यह साफ है कि मतदाता के लिए लोकसभा चुनाव और विधान सभा चुनाव के लिए पैमाने अलग होते हैं। अब अगर बिहार की आवाम को यह लगता है कि मनमोहन सिंह खरे नहीं उतरे, और आडवाणी वेटिंग में है। तो उस लिहाज से मतदाता अपना फैसला सुना सकता है। लेकिन नीतीश वोटर को दिग्भ्रमित करने का पूरा प्रयास करते नजर आ रहें है। वैसे बिहार में नीतीश सरकार कितनी खरी उतरी है वह 2010 के विधानसभा चुनाव में साफ हो जाएगा। सच बात तो यह है कि नीतीश को लोकसभा चुनावों में अच्छे परिणाम की बू आ रहीं है। वह चाहे, सूबे में विकास के कारण हो चाहे परिसीमन का उलटफेर हो या एंटी इन कंबेसी। साथ ही भाजपा पर एक अप्रत्यक्ष दबाब भी बनाना चाहते हैं जिससे सीटों के बंटवारे में उन्हें ज्यादा मशक्कत न करनी पड़े। वैसे नीतीश ने यह कहकर बहुत कुछ साफ कर दिया है कि मुस्लिम बहुल सीटों से भजपा को अपना दावा छोड़ देना चाहिए। क्योंकि मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देते।बिहार की राजनीति में नीतीश के उभार से भाजपा ही नहीं लालू और पासवान को भी परेशान होने की जरूरत है। क्योंकि बिहार में इतिहास बनते बिगड़ते देर नहीं लगती ?सौरभ कुमार (स्वतंत्र लेखन)भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली 110067

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