सुरें्र सिंह
पं्रहवीं लोकसभा चुनाव जूतम-बाजार, बद्जुबानी और बाहुबली उम्मीदवारों के लिए याद किए जाएंगे। बाहुबल और पूंजीबल के सामने जनता निर्बल है। राष्ट्रीय राजनीति दलों के दलदल में फंसती जा रही है। पहले भी पार्टियां चंदा इकट्ठा करती थीं। लेकिन आज पूंजी का प्रबंधन किया जाता है, चंदा उगाह जाता है। शुरुआती दौर में कांग्रेस के एस के पाटिल, सीवी गुप्ता, अतुल घोष, महावीर जसे लोग चुनाव खर्च के लिए चंदा जुटाते थे। विश्वास नहीं करेंगे, लेकिन सीवी पाटिल की मौत के बाद उनके घर से एक तखत और कुछ पढ़ने-लिखने का सामान, महावीर त्यागी के घर से एक टूटी कुर्सी और कुछ रोजमर्रा की जरूरत वाला सामान। कहने का मतलब है कि पहले राजनीति पैसे बटोरने का जरिया नहीं थी। लोकतंत्र की परिभाषा जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए आज अमीरों का, अमीरों के द्वारा, अमीरों के लिए में तब्दील हो गई है। जिस तरह से आचार संहिता की धज्जियां उड़ाकर बयान बाजी हो रही है इससे इसे सियासी मंदी का दौर ही कहा जा सकता है।
चुनाव से ही जुड़ा हुआ एक और वाकया है। एक बार हिसाब-किताब को लेकर महावीर त्यागी और नेहरू में ठन गई। त्यागी ने उस समय 12 हजार रुपए चंदा इकट्ठा किया। हालांकि जमींदार से चंदा लेने से पहले ही उन्होंने साफ कर दिया था कि वो दो हजार रुपए अपनी पत्नी सर्मिठा को चुनाव लड़ाने में खर्च करेंगे। लेकिन नेहरू को हिसाब देते वक्त वह यह बताना भूल गए। इस पर नेहरु बहुत नाराज हुए। महावीर भी खफा हुए। पर जसे ही उन्हें पैसों का हिसाब याद आया वो फौरन आनंद भवन पहुंचे और माफी मांगी।
चुनाव प्रचार भी बेहद सीधे-साधे ढंग से किया जाता था। पार्टियां एक चौक बनाकर, झंडे गाढ़कर बैठ जाती थीं। दल के मुखिया वहां आकर बेहद सीधे-साधे अंदाज में अपना मुद्दा बताते थे। आज हर पार्टी अपना घोषणा पत्र जारी करती है। मुद्दा विहीन घोषणा पत्रों में पार्टी महिमामंडन, सत्ता पर काबिज दल की बुराईयों के सिवा कुछ भी नहीं होता। नेहरू के ही समय का एक और चुनावी वाकया है, नेहरू ने संसद में बोला कि इस बार चुनाव में शराब और पैसे का प्रयोग किया गया है। वहां मौैजूद श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस गलतफहमी का शिकार हो गए कि नेहरु ने वाइन, मनी के साथ वुमेन अल्फाज का भी प्रयोग किया है। इस पर उन्होंने अपनी नाराजगी दर्ज कराई लेकिन जब उन्हें पता चला कि वो गलतफहमी का शिकार हुए थे, तो उन्होंने बाकायदा नेहरु से माफी मांगी। इस बात को बताने के पीछे मेरा मकसद है कि तब राजनीति सिद्धांतों से प्रेरित थी, गरिमा का ध्यान रखा जाता था। तब चुनाव लड़ने का आधार मुद्दे होते थे। आज तो ऐसी राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जब सीपीआई के भूपेश गुप्ता बोलते थे तो हर दल का नेता उन्हें ध्यान से सुनता था। राममनोहर लोहिया बोलते थे तो नेहरु सिद्दत के साथ उन्हें सुनते थे।
It begins with self
6 days ago
aapkee pehlee post ne hee prabhavit kiya, blogjagat par aapkaa swagat hai, bahut achhee shailee hai.
ReplyDeleteChaliye chunavi rang to aap par bhi chadh gaya hai aur isi karan aapne ye blog post kar diya.Sidhanton ki baat siyasat mein hi nahin kisi bhi kshetra mein karne se koi phayda nahi.Pahle log apne liye sochte hain aur uske baad kuchh bacha to dosaron ke liye.Kai rajnetaon ki purani baaton se aapne awgat karaya. Achchha laga.
ReplyDeleteआपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteएक निवेदन:
कृप्या वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो. मात्र एक निवेदन है बाकि आपकी इच्छा.
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानो!!.
बहुत बढिया आलेख है।बधाई।
ReplyDeleteबहुत खूब कहा आपने......आपकी बात से तो तनिक भी असहमत नहीं हुआ जा सकता....!!
ReplyDeleteलेख अच्छा है साथ में जानकारी भी है ..,
ReplyDeleteतब और अब की सोच में फरक है,
आदमी वो ही है निअत में फरक है
आपका स्वागत है ..,
आप् ख़ूब लिखें और बेहतर लिखें ..
हमारी शुभकामनाए सदा आपके साथ है.. मक्
पहले लोगों के लिए कुर्सी नहीं प्रधान।
ReplyDeleteअब तो कुर्सी के लिए ले लेते हैं जान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
लिखना तो बहुत अच्छी बात है और हम लिखने की हर कोशिश की सराहना करते हैं,किन्तु मित्र पढ़ना उससे भी अच्छी बात है .क्योंकि पढ़ कर ही आप लिखने के काबिल बनते हैं इसलिए अगर आप लिखने पर एक घंटा खर्च करते हैं तो और ब्लागों को पढने पर भी दो घंटे समय दीजिये ,ताकि आपकी लेखनी में और धार पैदा हो .मेरी शुभकामनाएं व सहयोग आपके साथ हैं
ReplyDeleteजय हिंद
yah to purane jamane kee bat hai, narayan narayan
ReplyDeleteराजनीति के बढिया पुराने वाकये बताये आपने | नए तो हम देख ही रहे हैं |
ReplyDeleteभारतीय राजनीति आगे नहीं पीछे जा रही है | इसकी प्रवृत्तियां परिवारवाद और सामंतवाद कि तरफ है | जो "मुद्दे" नहीं हैं, उन्हें मुद्दा बनाया जा रहा है | और जो वास्तविक मुद्दे हैं उनका कोइ नाम लेवा नहीं है |
सारी कवायद कुर्सी के लिए है बाकी सब इत्तिफाक है |
ब्लौग-जगत में आपका स्वागत है..शुभकामनायें
ReplyDeleteAchchha likhti hain aap. Lekin ab Neharu aor Lohia ka daur nahi hai. Sari dunia me naye badlaw aae hain. Unhin ke anusar sochane aur apni disha tay karne ki kosis karni chahie. Achchha hoga ki aapas me hum apne vichar bant kar ek dusare ko samridh karte rahenge agar. Thanks
ReplyDeleteArun Devgatikar
bahut acha likha hai aapne asha hai aage bhi aap aisa hi likhegi
ReplyDelete्राज़निति आजकल एक व्यवसाय है
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा लिखा है
लिखते रहें
ब्लोग जगत मे आपका स्वागत है। सुन्दर रचना। मेरे ब्लोग ्पर पधारे।
achcha likha hai aapney
ReplyDeletekabhi fursat ho to mere blog per bhi aayen aur comment bhi dein
http://www.ashokvichar.blogspot.com