चुनाव के दौरान सियासी हुक्मरान जिस तरह की तकरीरें पेश करते हैं, ये लोकतंत्र के लिए बेहद शर्मनाक और घातक है। आचार संहिता को ताक में रखकर आवाम को जात -पात, कौम, धर्म और बिरादरी में बांटा जा रहा है। दल बाहुबल और पैसा देखकर अपना उम्मीदवार तय कर रहे हैं। यह जम्हूरियत का मजाक उड़ाना नहीं तो और क्या है, कि कहीं एक संप्रदाय विशेष के खिलाफ बयान दिए जा रहे हैं तो कहीं गुड़िया-बुढ़िया जसी शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है। इधर जूता संस्कृति भी अपने पांव पसार रही है, इसके लिए भी दोषी राजनीतिक दल ही हैं। यह बौखलाहट है, आवाम की आवाज अनसुनी करने की। मैं पूंछता हूं कि आजादी के बासठ सालों बाद भी दल अपने लिए कोई नियमावली क्यों नहीं बना पाए? ऐसा नहीं है कि पहले हम प्रचार नहीं करते थे, दूसरे दलों की खामियां भी उजागर करते थे। लेकिन तहजीब के साथ। आवाम को भटकाते और धमकाते नहीं थे। हर पार्टी के पास अपना निजी मुद्दा होता था। आज तो बस अपने दामन को पाक-साफ बताने और दूसरे पर कीचड़ उछालने के सिवा अपना कोई मुद्दा ही नहीं है। तब नेता और नौकरशाह दोनों ईमानदार थे। 1957 का एक वाकया बताता हूं, उस समय खुर्जा सीट से समाजवादी पार्टी के ठाकुर छतर सिंह अपने निकट के प्रतिद्वंदी कांग्रेसी उम्मीदवार से 621 वोटों से जीते थे। अपने उम्मीदवार के प्रचार के लिए हमने एक बैनर बनाया। उसमें लिखा पिछले दस सालों से सत्ता में काबिज कांग्रेस ने पूजीपतियों को बढ़ावा दिया। आवाम का एक तबका आज भी हासिए में है। नीचे लिखा, अगर आपका जमीर गवाह देता है कि कांग्रेस को चुनना चाहिए तो आप उसी को वोट दिजीए। न कहीं असभ्य भाषा का प्रयोग न ज्यादा शोर-शराबा। रिप्रजेंटेटिव पीपुल्स एक्ट 123 (3) के तहत हमारी पेशी हुई कि हमने जनता को भड़काकर वोट मांगे। हम अदालत पहुंचे हमने कहा भाई हमने कहीं भी यह नहीं कहा कि आप हमें वोट दें। हमने कहीं कोई झूठे तथ्य सामने नहीं रखे। जज साहब ने पूरे मामले को समझा-बूझा और कहा, इस बैनर में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस एतराज किया जाए। सत्ता में कांग्रेस थी उसने प्रदेश मुख्यमंत्री पंथ साहब को खत लिखकर दुबारा चुनाव कराने की बात कही, आप यकीन नहीं मांगेगे डीएम ने मुख्यमंत्री से बात करके पूरे मसले को साफ किया कि शक की कोई गुंजाइश नहीं है, चुनाव बेहद साफ-सुथरे ढंग से हुए हैं। क्या आज कोई नौकरशाह ऐसा कर सकता है, या कहें कि इतनी आसानी से नेता नौकरशाह की तकरीर पर अमल करेंगे, नहीं। अब तो नौकरशाही, राजनीति का हिस्सा बन गई है। पं्रहवीं सभा के पहले चरण का मतदान लहू- लुहान रहा। सारा तंत्र फेल हो गया है। आज, राममनोहर लोहिया के चौखंभा राज्य की संकल्पना ध्वस्त हो गई। पूंजी और बाहुबल का गठजोड़ सत्ता चला रहा है। मैं फौजी हूं, हमने अपने देश से उस ब्रिटिश हुकूमत के पांव उखाड़ दिए जिसके लिए कहा जाता था कि उनके राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता। मुङो यकीन है, जल्द ही बदलाव होगा, किसी दल विशेष की सोच के साथ बल्कि स्वतंत्र विचारों के साथ नौजवान आगे आएंगे।
SANDHYAJI,
ReplyDeleterajneeti aur rajneta ab hamare loktantra k liye ek abhishap ban gaye hain ...........
dukh ki is bela me hum sab rachnakar sath sath rahen toh behtar hoga AAPKA AALEKH JAANDAAR HAI-BADHAI....
-albela khatri
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